Gaiye Ganpati Jag Vandan
श्री गणेश वन्दना गाइये गणपति जगवन्दन, शंकर–सुवन, भवानी-नन्दन सिद्धि सदन गज-वदन विनायक, कृपा सिन्धु सुन्दर सब लायक मोदक-प्रिय, मुद मंगलदाता, विद्या-वारिधि, बुद्धि-विधाता माँगत ‘तुलसिदास’ कर जोरे, बसहिं रामसिय मानस मोरे
Abki Tek Hamari, Laj Rakho Girdhari
शरणागति अबकी हमारी, लाज राखो गिरिधारी जैसी लाज राखी अर्जुन की, भारत-युद्ध मँझारी सारथि होके रथ को हाँक्यो, चक्र सुदर्शन धारी भक्त की टेक न टारी जैसी लाज राखी द्रोपदी की, होन न दीनि उघारी खेंचत खेंचत दोउ भुज थाके, दुःशासन पचि हारी चीर बढ़ायो मुरारी सूरदास की लज्जा राखो, अब को है रखवारी राधे […]
Kaha Sukh Braj Ko So Sansar
ब्रज-महिमा कहाँ सुख ब्रज कौ सौ संसार कहाँ सुखद बंसी-वट जमुना, यह मन सदा विचार कहाँ बन धाम कहाँ राधा सँग, कहाँ संग ब्रज वाम कहाँ विरह सुख बिन गोपिन सँग, ‘सूर’ स्याम मन साम
Charan Kamal Bando Hari Rai
वंदना चरन-कमल बंदौं हरि राइ जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौ सब कछु दरसाइ बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराइ ‘सूरदास’ स्वामी करुनामय, बार-बार बन्दौ तेहि पाइ
Jo Tu Krishna Nam Dhan Dharto
नाम महिमा जो तूँ कृष्ण नाम धन धरतो अब को जनम आगिलो तेरो, दोऊ जनम सुधरतो जन को त्रास सबै मिटि जातो, भगत नाँउ तेरो परतो ‘सूरदास’ बैकुण्ठ लोक में, कोई न फेंट पकरतो
Nandahi Kahat Jasoda Rani
मुख में सृष्टि नंदहि कहत जसोदा रानी माटी कैं मिस मुख दिखरायौ, तिहूँ लोक रजधानी स्वर्ग, पताल, धरनि, बन, पर्वत, बदन माँझ रहे आनी नदी-सुमेर, देखि भौंचक भई, याकी अकथ कहानी चितै रहे तब नन्द जुवति-मुख, मन-मन करत बिनानी सूरदास’ तब कहति जसोदा, गर्ग कही यह बानी
Braj Ke Birahi Log Dukhare
वियोग ब्रज के बिरही लोग दुखारे बिन गोपाल ठगे से ठाढ़े, अति दुरबल तनु कारे नन्द जसोदा मारग जोवत, नित उठि साँझ सकारे चहुँ दिसि ‘कान्ह कान्ह’ करि टेरत, अँसुवन बहत पनारे गोपी गाय ग्वाल गोसुत सब, अति ही दीन बिचारे ‘सूरदास’ प्रभु बिन यों सोभित, चन्द्र बिना ज्यों तारे
Maiya Kabahi Badhegi Choti
बालकृष्ण माधुर्य मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी मोटी काढ़त गुहत नहावत पोंछत, नागिन सी भ्वै लोटी काचो दूध पिवावति पचि पचि, देति न माखन रोटी ‘सूरदास’ चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी
Yah Lila Sab Karat Kanhai
अन्नकूट यह लीला सब करत कन्हाई जेंमत है गोवर्धन के संग, इत राधा सों प्रीति लगाई इत गोपिनसों कहत जिमावो, उत आपुन जेंमत मन लाई आगे धरे छहों रस व्यंजन, चहुँ दिसि तें सोभा अधिकाई अंबर चढ़े देव गण देखत, जय ध्वनि करत सुमन बरखाई ‘सूर’ श्याम सबके सुखकारी, भक्त हेतु अवतार सदाई
Sabse Unchi Prem Sagai
प्रेम का नाता सबसे ऊँची प्रेम सगाई दुर्योधन को मेवा त्याग्यो, साग विदुर घर खाई जूठे फल सबरी के खाये, बहु विधि स्वाद बताई प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं, आप बने हरि नाई राज सुयज्ञ युधिष्टिर कीन्हों, तामे झूठ उठाई प्रेम के बस पारथ रथ हांक्यो, भूलि गये ठकुराई ऐसी प्रीति बढ़ी वृन्दावन, गोपिन […]