शिवाशीव स्तुति
स्वामिन्! पशुपति! प्रभो! दास के पास छुड़ाओ
जगदम्बा! माँ! उमा वत्स कूँ हृदय लगाओ
भटक्यो जग महँ जनक! शरन चरनन महँ दीजे
माँ! अब गोद बिठाय चूमि मुख सुत कूँ लीजे
यद्यपि हौं अति अधमहूँ, तऊ पिता! अपनाइ लैं
मैं जो साधन रहित सुत, कूँ हिय तें चिपकाइ लैं
Category: Shiv
Shankar Teri Jata Main Shamil Hai Gang Dhara
शिवशंकर
शंकर तेरी जटा में शोभित है गंग-धारा
काली घटा के अंदर, चपला का ज्यों उजारा
गल मुण्डमाल राजे, शशि शीश पर बिराजे
डमरू निनाद बाजे, कर में त्रिशूल साजे
मृग चर्म वसन धारी, नंदी पे हो सवारी
भक्तों के दुःख हारी, गिरिजा के सँग विहारी
शिव नाम जो उचारे, सब पाप दोष जारे
भव-सिंधु से ‘ब्रह्मानंद’, उस पार शिव उतारे
Are Ham Naam Jape Shiv Ka
शिव महिमा
अरे! हम नाम जपें शिव का, नित्य श्रद्धा से बारम्बार
महादेव की महिमा भारी, कोई न पाये पार
आशुतोष को भोले शंकर, कहता सब संसार
आप हिमालय पे गौरी संग, करे दिव्य अभिसार
रौद्र रूप में करते हैं शिव, दुष्टों का संहार
गंग विराजे जटा बीच, शशि मस्तक का श्रृंगार
बम बम भोले ओढरदानी, कर दो भवनिधि पार
Jo Nishchal Bhakti Kare
शिव आराधना
जो निश्छल भक्ति करे उसको, भोले शम्भू अपना लेते
वे धारण करें रजोगुण को, और सृष्टि की रचना करते
होकर के युक्त सत्त्वगुण से, वे ही धारण पोषण करते
माया त्रिगुणों से परे प्रभु, शुद्ध स्वरूप स्थित होते
ब्रह्मा, विष्णु, अरु, रुद्र, रूप, सृष्टि, पालन,लय वहीं करें
हैं पूर्ण ब्रह्म प्रभु आशुतोष, अपराध हमारे क्षमा करें
Dulha Ban Aaya Tripurari
शिव विवाह (राजस्थानी)
दूल्हा बणआया त्रिपुरारी
पारबती की सखियाँ प्यारी, गावे हिलि मिलि गारी
भसम रमाय बाघंबर पहर्यो, गल मुण्डमाला धारी
हाथ त्रिशूल बजावत डमरू, नंदी की असवारी
भूत पिशाच बराती बणग्या, नाचै दै दै तारी
सरप करे फुंकार कण्ठ में, डरप रह्या नर नारी
सीस जटा बिच गंगा विहरे, भाल चाँद छबि न्यारी
निरखत ही सब पाप नसाये, महिमा अपरमपारी
Sharnagat Par Shiv Kripa Karen
मृत्युंजय शिव
शरणागत पर शिवकृपा करें, रोगों से मुक्ति प्रदान करें
मृत्यु तो निश्चित है परन्तु, हम पूर्णायु को प्राप्त करें
स्वाभाविक मानव की इच्छा, वह स्वस्थ रहे प्रभु कष्ट हरें
‘मृत्युंजय मंत्र’ को सिद्ध करे, शिव उसको स्वास्थ्य प्रदान करें
विधिपूर्वक निश्चित संख्या में, जो इसी मंत्र का जाप करे
मृत्युंजय शिव का भजन करें, प्रभु मृत्यु का भय दूर करे
दीर्घायु स्वस्थ होगा जीवन, अन्ततः मृत्यु का वरण करे
ककड़ी जैसे ही पक जाती, तो स्वतः बेल से टूट गिरे
Shivshankar Se Jo Bhi Mange
औढरदानी शिव
शिवशंकर से जो भी माँगे, वर देते उसको ही वैसा
औढरदानी प्रभु आशुतोष, दूजा न देव कोई ऐसा
कर दिया भस्म तो कामदेव, पर वर प्रदान करते रति को
वे व्यक्ति भटकते ही रहते, जो नहीं पूजते शंकर को
काशी में करे जो देह त्याग, निश्चित ही मुक्त वे हो जाते
महादेव अनुग्रह हो जिस पर, मनवांछित फल को वे पाते
Shiva Shiv Bane Radhika Shyam
शिवाशिव महिमा
शिवा शिव बने राधिका श्याम
एक बार कैलाश धाम में, शंकर दुर्गा संग
करने लगे विहार वहाँ पर, अतिशय अद्भुत ढंग
रूप मनोहर अति देवी का, मुग्ध हुए शिवशंकर
लगे सोचने नारी को यह, रूप मिला अति सुन्दर
शिव बोले मैं बनूँ राधिका, तुम नँदनंदन प्यारी
बने प्रभु वृषभानुनंदिनी, दक्षसुता गिरिधारी
देव देवियों ने भी तत्पर, लिया वहाँ अवतार
राधा कृष्ण रूप देवी शिव, हरे धरा का भार
यह प्रसंग ‘देवी-पुराण’ का, पढ़े सुने चित लाय
धुले सर्वथा मैल हृदय का, भक्तों के मन भाय
Shivshankar Ka Jo Bhajan Kare
आशुतोष शिव
शिवशंकर का जो भजन करें, मनचाहा वर प्रभु से पाते
वे आशुतोष औढरदानी, भक्तों के संकट को हरते
जप में अर्जुन थे लीन जहाँ पर, अस्त्र-शस्त्र जब पाने को
दुर्योधन ने निशिचर भेजा, अर्जुन का वध करने को
मायावी शूकर रूप धरे, शीघ्र ही वहाँ पर जब आया
शिव ने किरात का रूप लिया, कुन्तीसुत समझ नहीं पाया
रण-कौशल द्वारा अर्जुन ने, जब शौर्य दिखाया शम्भु को
प्रभु सौम्य रूप धर प्रकट हुए, आश्चर्य हो गया अर्जुन को
दर्शन पाकर गिर गया पार्थ, तव आशुतोष के चरणों में
तो अस्त्र पाशुपत दिया उसे, जो चाहा था उसने मन में
Sadashiv Bholenath Kahayen
सदाशिव महिमा
सदाशिव भोलेनाथ कहाये
आशुतोष भयहारी शम्भो, महिमा ॠषि-मुनि गाये
शरणागत जो करे याचना, वह निहाल हो जाये
औढरदानी विरुद तिहारो, अन्य देव सकुचाये
वर देकर विचित्र संकट में, अपने को उलझाये
भस्मासुर बाणासुर से श्री हरि निस्तार कराये
तीन नयन, सर्पों की माला, चिता भस्म लपटाये
अशुभ वेष धारण तुम कीन्हों, तो भी शिव कहलाये
प्रेत, पिशाच और भूतों के, सँग में आनँद पाये
कर त्रिशूल, कटि में बाघम्बर, जटा गंग लहराये
अति उदार, अत्यन्त कृपालू, विष को भी पी जाये
कामदेव का मर्दन करके, रति को वर दे जाये
जो जन प्राण तजे काशी में, वही मोक्ष-गति पाये
सत्-चित्-आनन्द, अलख-निरंजन, दुर्गति, दुःख भगाये
आक, धतूरा, बिल्व-पत्र, जल को जो तुम्हें चढ़ाये
वामदेव पूजा प्रणाम से, तदनुकूल हो जाये