Sun Ri Sakhi Bat Ek Mori
ठिठोली सुन री सखी, बात एक मेरी तोसौं धरौं दुराई, कहौं केहि, तू जानै सब चित की मेरी मैं गोरस लै जाति अकेली, काल्हि कान्ह बहियाँ गही मेरी हार सहित अंचल गहि गाढ़े, इक कर गही मटुकिया मेरी तब मैं कह्यौ खीझि हरि छोड़ौ, टूटेगी मोतिन लर मेरी ‘सूर’ स्याम ऐसे मोहि रीझयौ, कहा कहति […]
Hari Dekhe Binu Kal Na Pare
विरह व्यथा हरि देखे बिनु कल न परै जा दिन तैं वे दृष्टि परे हैं, क्यों हूँ चित उन तै न टरै नव कुमार मनमोहन ललना, प्रान जिवन-धन क्यौं बिसरै सूर गोपाल सनेह न छाँड़ै, देह ध्यान सखि कौन करै
Govind Kabahu Mile Piya Mera
विरह व्यथा गोविन्द कबहुँ मिले पिया मेरा चरण कँवल को हँस-हँस देखूँ, राखूँ नैणा नेरा निरखण को मोहि चाव घणेरो, कब देखूँ मुख तेरा व्याकुल प्राण धरत नहीं धीरज, तुम सो प्रेम घनेरा ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ताप तपन बहुतेरा
Tumhare Kaaran Sab Sukh Chodya
विरह व्यथा तुम्हरे कारण सब सुख छोड्यो, अब मोहि क्यूँ तरसावो बिरह व्यथा लागी उर अंदर, सो तुम आय बुझावो अब छोड्याँ नहिं बनै प्रभूजी, हँस कर तुरत बुलाओ ‘मीराँ’ दासी जनम जनम की, अंग सूँ अंग लगाओ
Piya Itani Vinati Suno Mori
शरणागति पिया इतनी विनती सुनो मोरी औरन सूँ रस-बतियाँ करत हो, हम से रहे चित चोरी तुम बिन मेरे और न कोई, मैं सरणागत तोरी आवण कह गए अजहूँ न आये, दिवस रहे अब थोरी ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, अरज करूँ कर जोरी
Matwaro Badal Aayo Re
मेघ श्याम मतवारो बादल आयो रे, हरि को संदेस न लायो रे दादुर मोर पपीहा बोले, कोयल सबद सुणायो रे कारो अँधेरो बिजुरी चमके, बिरहन अति डरपायो रे गाजे बाजे पवन मधुरिया, मेघा झड़ी लगायो रे दासी थारी बिरह की जारी, ‘मीराँ’ मन हरि भायो रे
Main Hari Charanan Ki Dasi
हरि की दासी मैं हरि चरणन की दासी मलिन विषय रस त्यागे जग के, कृष्ण नाम रस प्यासी दुख अपमान कष्ट सब सहिया, लोग कहे कुलनासी आओ प्रीतम सुन्दर निरुपम, अंतर होत उदासी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, चैन, नींद सब नासी
Shyam Binu Rahyo Na Jay
विरह व्यथा स्याम बिनु रह्यो न जाय खान पानमोहि फीको लागे, नैणा रहे मुरझाय बार बार मैं अरज करूँ छूँ, रैण गई दिन जाय ‘मीराँ’ कहे हरि तुम मिलिया बिन, तरस तरस तन जाय
Jivan Ke Din Char Re Man Karo Punya Ke Kam
नाशवान संसार जीवन के दिन चार रे, मन करो पुण्य के काम पानी का सा बुदबुदा, जो धरा आदमी नाम कौल किया था, भजन करूँगा, आन बसाया धाम हाथी छूटा ठाम से रे, लश्कर करी पुकार दसों द्वार तो बन्द है, निकल गया असवार जैसा पानी ओस का, वैसा बस संसार झिलमिल झिलमिल हो रहा, […]
Mukhada Kya Dekhe Darpan Main
दया-धर्म मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, तेरे दया धरम नहीं मन में कागज की एक नाव बनाई, छोड़ी गंगा-जल में धर्मी कर्मी पार उतर गये, पापी डूबे जल में आम की डारी कोयल राजी, मछली राजी जल में साधु रहे जंगल में राजी, गृहस्थ राजी धन में ऐंठी धोती पाग लपेटी, तेल चुआ जुलफन में […]