Sobhit Kar Navneet Liye

बाल कृष्ण माधुर्य सोभित कर नवनीत लिये घुटुरुन चलत रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किये चारू कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिये लत लटकनि मनौ मत्त मधुप गन, माधुरि मधुहि पिये कठुला कंठ वज्र के हरि नख, राजत रुचिर हिये धन्य ‘सूर’ एकेउ पल यहि सुख, का सत् कल्प जियें

He Govind He Gopal He Govind Rakho Sharan

शरणागति हे गोविन्द, हे गोपाल, हे गोविन्द राखो शरण अब तो जीवन हारे, हे गोविन्द, हे गोपाल नीर पिवन हेतु गयो, सिन्धु के किनारे सिन्धु बीच बसत ग्राह, चरन धरि पछारे चार प्रहर युद्ध भयो, ले गयो मझधारे नाक कान डूबन लागे, कृष्ण को पुकारे द्वारका में शब्द गयो, शोर भयो भारे शंख-चक्र, गदा-पद्म, गरूड़ […]

Chalo Re Man Jamna Ji Ke Tir

यमुना का तीर चलो रे मन जमनाजी के तीर जमनाजी को निरमल पाणी, सीतल होत शरीर बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लिये बलबीर मोर मुकुट पीताम्बर सोहे, कुण्डल झलकत हीर मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कँवल पर सीर

Thane Kai Kai Samjhawan

विरह व्यथा थाने काँईं काँईं समझाँवा, म्हारा साँवरा गिरधारी पुरब जनम की प्रीत हमारी, अब नहीं जाय बिसारी रोम रोम में अँखियाँ अटकी, नख सिख की बलिहारी सुंदर बदन निरखियो जब ते, पलक न लागे म्हाँरी अब तो बेग पधारो मोहन, लग्यो उमावो भारी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, सुधि लो तुरत ही म्हारी

Pyari Darsan Dijyo Aay

विरह व्यथा प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय जल बिन कमल, चंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्या बिन सजनी आकुल-व्याकुल फिरूँ रैन-दिन, विरह कलेजो खाय दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूँ कथत न आवै बैना कहा कहूँ कछु कहत न आवे, मिलकर तपत बुझाय क्यूँ तरसाओ अंतरजामी, आय मिलो किरपा […]

Meera Magan Hari Ke Gun Gay

मग्न मीरा मीराँ मगन हरि के गुण गाय साँप-पिटारा राणा भेज्या, मीराँ हाथ दियो जाय न्हाय धोय जब देखण लागी, सालिगराम गई पाय जहर को प्याला राणाजी भेज्या, अमृत दियो बनाय न्हाय धोय जब पीवण लागी, हो गई अमर अँचाय सूल सेज राणाजी भेजी, दीज्यो मीराँ सुलाय साँझ भई मीराँ सोवण लागी, मानो फूल बिछाय […]

Mhare Ghar Aao Pritam Pyara

आओ प्रीतम म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा, जग तुम बिन लागे खारा तन-मन धन सब भेंट धरूँगी, भजन करूँगी तुम्हारा तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये, मोमें औगुण सारा मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूँ, ये सब बगसण हारा ‘मीराँ’ कहे प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन नैण दुखारा

Sanwara Mhari Prit Nibhajyo Ji

शरणागति साँवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी थें छो सगला गुण रा सागर, म्हारा औगुण थे बिसराज्यो जी लोक न धीजै, मन न पतीजै, मुखड़े शब्द सुणाज्यो जी दासी थारी जनम-जनम री, म्हारै आँगण आज्यो जी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी

Dar Lage Aur Hansi Aave

कलियुग की रीति डर लागे और हाँसी आवे, गजब जमाना आया रे धन दौलत से भरा खजाना, वैश्या नाच नचाया रे मुट्ठी अन्न जो साधू माँगे, देने में सकुचाया रे कथा होय तहँ श्रोता जावे, वक्ता मूढ़ पचाया रे भाँग, तमाखू, सुलफा, गाँजा, खूब शराब उड़ाया रे उलटी चलन चले दुनियाँ में, ताते जी घबराया […]

Rahna Nahi Des Birana Hai

नश्वर संसार रहना नहीं देस बिराना है यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है यह संसार काँट की बाड़ी, उलझ उलझ मरि जाना है यह संसार झाड़ और झाँखर, आग लगे बरि जाना है कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, सतगुरु नाम ठिकाना है