Ab Sonp Diya Is Jiwan Ka

समर्पण
अब सौंप दिया इस जीवन को, सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथो में और हार तुम्हारे हाथों में
मेरा निश्चय बस एक यही, एक बार तुम्हें पा जाऊँ मैं
अर्पण कर दूँ दुनिया भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में
जो जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ, ज्यों जल में कमल का फूल रहे
मेरे गुण दोष समर्पित हों, श्रीकृष्ण तुम्हारें हाथों में
यदि मानव का मुझे जन्म मिले, तो तव चरणों का पुजारी बनूँ
इस पूजक की इक-इक रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में
जब जब संसार का कैदी बनूँ, निष्काम भाव से कर्म करूँ
फिर अन्त समय में प्राण तजूँ, भगवान तुम्हारे हाथों में
मुझ में तुम में बस भेद यही, मैं नर हूँ तुम नारायण हो
मैं हूँ संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे हाथों में

Itna To Karna Swami Jab Pran Tan Se Nikale

विनती
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से निकले
श्री यमुनाजी का तट हो, स्थान वंशी-वट हो
मेरा साँवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकलें
श्री वृन्दावन का थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो
विष्णु-चरण का जल हो, जब प्राण तन से निकलें
मेरा साँवरा निकट हो, मुरली का स्वर भरा हो
तिरछा चरण धरा हो, जब प्राण तन से निकलें
सिर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पै काली लट हो
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से निकलें
पट-पीत कटि बँधा हो, होठों पे भी हँसी हो
छवि मन में यह बसी हो, जब प्राण तन से निकलें
जब कण्ठ प्राण आवें, कोई रोग ना सतावें
यम त्रास ना दिखावे, जब प्राण तन से निकलें
मेरा प्राण निकले सुख से, तेरा नाम निकले मुख से
बच जाऊँ घोर दुःख से, जब प्राण तन से निकलें
आना अवश्य आना, राधे को साथ लाना
इतनी कृपा तो करना, जब प्राण तन से निकलें