रास लीला
आजु जुगल वर रास रचायो, कालिन्दी के कूल री सजनी
ब्रह्मा, शिव की मति बौराई, मनसिज के मन सूल री सजनी
बिच बिच गोपी श्याम सुशोभित, जनु मुक्ता-मणि माल री सजनी
बाजहिं बहु-विधि वाद्य अनूपम, राग रंग ध्वनि मीठी री सजनी
भाव भंगि करि नाचहिं गावहिं, उर उमँग्यौ अनुराग री सजनी
कटि किंकिनि की रुन-झुन धुनि सुनि, मुनि मन मोहिं रसाल री सजनी
चढ़िनभ-यान लखहिं सुर, सुर-तिय, बरसहिं सुमन-माल री सजनी
Category: Sharad Purnima
Rasotsav Ati Divya Hua Hai
रास लीला
रासोत्सव अति दिव्य हुआ है वृन्दावन में
रमण-रेती यमुनाजी की, हर्षित सब मन में
शरद पूर्णिमा रात्रि, चाँदनी छिटक रही थी
प्रेयसियाँ अनुराग रंग में रंगी हुई थी
मंडल के बीच राधारानी कुंज बिहारी
अभिनय अनुपम, छवि युगल की अति मनहारी
रसमय क्रीड़ा देव देवियाँ मुग्ध हुए हैं
सभी ग्रहों के साथ चन्द्रमा उदित हुए हैं
दो-दो गोपी बीच श्याम तब प्रकट हो गये
सभी स्वर्ग के दिव्य वाद्य भी, स्वतः बज गये
चिन्मय रास-विलास गोपियाँ नृत्य कर रहीं
ठुमक-ठुमक वे भाँति-भाँति से चरण रख रहीं
गा गा कर वे नाच रहीं, रति भी ललचाये
कृष्ण-कन्हैया गोपीजन को हृदय लगावे
कानों के कुण्डल कपोल पर हिल हिल छाये
रोम रोम सब गोपीजन के, तब खिल जाये
चिदानन्दमय यह लीला, भगवान् कृष्ण की
भक्ति सुलभ हो, काम-भावना मिटे हृदय की
Van Main Raas Chata Chitarai
रास लीला
वन में रास छटा छितराई
चम्पा बकुल मालती मुकुलित, मनमोहक वनराई
कानन में सजधज के गोपियन,रूप धर्यो सुखदाई
शरद पूर्णिमा यमुना-तट पे, ऋतु बसंत है छाई
आकर्षक उर माल सुवेषित अभिनव कृष्ण पधारे
दो-दो गोपी मध्य श्याम ने, रूप अनेकों धारे
राजत मण्डल मध्य कन्हैया, संग राधिका प्यारी
वेणु बजी ताल और लय में, मुरली स्वर रुचिकारी
गले डाल गोपियन के बहियाँ, प्रमुदित श्याम मनोहर
उत्कण्ठित ब्रज-ललनाओं का, विलसित सुभग कलेवर
कानों में झुमके, नक बेसर, स्वर्ण किंकिणी लटके
नूपुर की झंकार गोपियाँ, हृदय तरंगित मटके
हिले क्षीण-कटि सुन्दरियों के, चपल नैन मदमाते
ठुमक-ठुमक पग धरे रास में, राग रागिनी गाते
विविध विलास कला मोहन की, सखियाँ सब हरषार्इं
अधरामृत पी आप्त काम हो, जी की जलन मिटाई
भूतल पर जो महारास की, चिन्मय लीला गाये
श्रवण करे यदि शुद्ध भाव से, हृदय रोग मिट जाये
Van Main Ruchir Vihar Kiyo
वन विहार
वन में रुचिर विहार कियो
शारदीय पूनम वृन्दावन, अद्भुत रूप लियो
धरी अधर पे मुरली मोहन स्वर लहरी गुंजाई
ब्रज बालाएँ झटपट दौड़ी, सुधबुध भी बिसराई
छलिया कृष्ण कहे सखियों को, अनुचित निशि में आना
लोक लाज मर्यादा हेतु, योग्य पुनः घर जाना
अनुनय विनय करें यों बोली, ‘तुम सर्वस्व हमारे’
‘पति-पुत्र घर सब कुछ त्यागा, आई शरण तुम्हारे’
कहा श्याम ने ‘ऋणी तुम्हारा, मुझको जो अपनाया’
भ्रमण किया उनके संग वन में, मन का मोद बढ़ाया
शीतल मन्द समीर बह रहा, लता पुष्प विकसाये
करें श्याम आलिंगन उनको, मृदुल हास्य बिखराये
हुआ गर्व सम्मानित होकर, लगा श्याम हैं वश में
अन्तर्धान हुवे बनवारी, लिये राधिका सँग में
करने लगी विलाप गोपियाँ, भटक रही वन-वन में
‘हाय! श्यामसुन्दर ने हमको, त्याग दिया कानन में’
उधर मदनमोहन करते थे, प्रणय-केलि राधा से
मान हो गया कहा ‘प्राणधन, क्लांत हुई चलने से’
बोले मोहन-‘चढ़ जाओ, कंधे पर प्राण-पियारी’
लगी बैठने ज्यों ही तब तो, लुप्त हुवे बनवारी
हुआ न सहन वियोग श्याम का, जिनसे प्रेम अगाधा
करते खोज गोपियाँ आई, देखा मूर्छित राधा
विजन झले फिर धैर्य बँधाया, हुई चेतना तब तो
करने लगी विलाप पुकारें, ‘मिलो प्राणपति अब तो’
रह न सके दुख दूर किया, प्रकटे नयनों के तारे
करुणासिक्त वचन में बोली, ‘कहाँ छिपे थे प्यारे’
नवल कृष्ण की वन-क्रीड़ा जो, श्रवण करे श्रद्धा से
करे प्रचार धरा पे उनको मुक्ति मिले पापों से