Nath Kaise Bali Ghar Yachan Aaye

वामन अवतार
नाथ कैसे बलि घर याचन आये
बलिराजा रणधीर महाबल, इन्द्रादिक भय खाये
तीन लोक उनके वश आये, निर्भय राज चलाये
वामन रूप धरा श्री हरि ने, बलि के यज्ञ सिधाये
तीन चरण पृथ्वी दो राजन! कुटिया चाहूँ बनायें
बलि ने दान दिया जैसे ही तत्क्षण रूप बढ़ाये
तीन लोक में पैर पसारे, बलि पाताल पठाये
चरण-कमल से गंगा निकली, देव पुष्प बरसाये
‘ब्रह्मानंद’ भक्त हितकारी, दानव गर्व नसाये

Kashyap Aditi Ke Putra Rup

भगवान् वामन
कश्यप अदिति के पुत्र रूप जन्मे हरि, शिव अज हर्षाये
वामन का रूप धरा हरिने, बलियज्ञ भूमि पर वे आये
स्वागत करके बलि यों बोले, जो चाहे कुछ तो माँगो भी
हरि बोले ‘भूमि दो तीन पैर, हो जरा न कम या ज्यादा भी’
बलि ने ज्योंही हामी भरदी, वामन ने रूप अनन्त किया
सारी पृथ्वी व सत्यलोक को, दो पग में ही नाप लिया
श्री-चरण पखारे ब्रह्मा ने, वह जल ही गंगा रूप हुआ
जल उसका तो हरि का स्वरूप, सब लोकों में आनन्द हुआ
‘बलि तृतीय पग धरती का तो पूरा ही तुमने कहाँ किया’
राजा ने प्रभु की स्तुति की, तो सुतल लोक का राज्य दिया

Pragate Shri Vaaman Avtar

वामन अवतार
प्रगटे श्री वामन अवतार
निरख अदिति मुख करत प्रशंसा, जगजीवन आधार
तन श्याम पीत-पट राजत, शोभित है भुज चार
कुण्डल मुकुट कंठ कौस्तुभ-मणि, अरु भृगुरेखा सार
देखि वदन आनंदित सुर-मुनि, जय-जय निगम उचार
‘गोविंददास’ हरि वामन होके, ठाड़े बलि के द्वार