Ab Lo Nasani

भजन के पद
शुभ संकल्प
अब लौं नसानी, अब न नसैंहौं
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैंहौं
पायउँ नाम चारु चिंतामनि, उर करतें न खसैंहौं
श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैंहौं
परबस जानी हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैंहौं
मन मधुकर पन करके ‘तुलसी’, रघुपति पद-कमल बसैंहौं

Tu So Raha Ab Tak Musafir

चेतावनी
तूँ सो रहा अब तक मुसाफिर, जागता है क्यों नहीं
था व्यस्त कारोबार में,अब भोग में खोया कहीं
मोहवश जैसे पतिंगा, दीपक की लौ में जल मरे
मतिमान तूँ घर बार में फिर, प्रीति इतनी क्यों करे
लालच में पड़ता कीर ज्यों, पिंजरे में उसका हाल ज्यों
फिर भी उलझता जा रहा, संसार माया जाल क्यों
भगवान का आश्रय ग्रहण जग से नाता तोड़ दें
प्राणियों के वे सुहद, भव-निधि से तुझको तार दे  

Ab To Pragat Bhai Jag Jani

प्रेमानुभूति
अब तो पगट भई जग जानी
वा मोहन सों प्रीति निरंतर, क्यों निबहेगी छानी
कहा करौं वह सुंदर मूरति, नयननि माँझि समानी
निकसत नाहिं बहुत पचिहारी, रोम-रोम उरझानी
अब कैसे निर्वारि जाति है, मिल्यो दूध ज्यौं पानी
‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, उर अंतर की जानी

Ab To Sanjh Bit Rahi Shyam

होली
अब तो साँझ बीत रही श्याम, छोड़ो बहियाँ मोरी
तुम ठहरे ब्रजराज कुँवरजी, हम ग्वालिन अति भोरी
आनंद मगन कहूँ मैं मोहन,अब तो जाऊँ पौरी
लाज बचेगी मोरी
सास, ननद के चुपके छाने, तुम संग खेली होरी
अँगुली पकरत पहुँचो पकरयो और करी बरजोरी
हम हैं ब्रज की छोरी
मीठी-मीठी तान बजाकर, लेन सखिन चित चोरी
‘सूरदास’ प्रभु कुँवर कन्हाई, मुख लपटावत रोरी
बोलत हो हो होरी

Ab Me Nachyo Bahut Gopal

मोह माया
अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाल
काम क्रोध को पहिर चोलनो, कंठ विषय की माल
महा मोह के नूपुर बाजत, निन्दा शबद रसाल
भरम भर्यो मन-भयो पखावज, चलत कुसंगत चाल
तृष्णा नाद करत घट भीतर, नाना विधि दे ताल
माया को कटि फैंटा बाँध्यो, लोभ तिलक दियो भाल
कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहीं काल
‘सूरदास’ की सबै अविद्या, दूरि करो नन्दलाल

Ab Jago Mohan Pyare

प्रभाती
अब जागो मोहन प्यारे
मात जसोदा दूध भात लिये, बैठी प्रात पुकारे
उठो मेरे मोहन आ मेरे श्याम, माखन मिसरी खारे
वन विचरन को गौएँ ठाड़ीं, ग्वाल बाल मिल सारे
तुम रे बिन एक पग नहिं चाले, राह कटत सब हारे
ना तुम सोये ना मैं जगाऊँ, लोग भरम भये प्यारे
दासी ‘मीराँ’ झुक झुक देखत, श्याम सूरति मतवारे

Ab To Nibhayan Saregi Rakh Lo Mhari Laj

शरणागति
अब तो निभायाँ सरेगी, रख लो म्हारी लाज
प्रभुजी! समरथ शरण तिहारी, सकल सुधारो काज
भवसागर संसार प्रबल है, जामे तुम ही जहाज
निरालम्ब आधार जगत्-गुरु, तुम बिन होय अकाज
जुग जुग भीर हरी भक्तन की, तुम पर उनको नाज
‘मीराँ’ सरण गही चरणन की, पत राखो महाराज

Ab To Hari Nam Lo Lagi

चैतन्य महाप्रभु
अब तो हरी नाम लौ लागी
सब जग को यह माखन चोरा, नाम धर्यो बैरागी
कित छोड़ी वह मोहक मुरली, कित छोड़ी सब गोपी
मूँड मुँडाई डोरी कटि बाँधी, माथे मोहन टोपी
मात जसोमति माखन कारन, बाँधे जाके पाँव
श्याम किसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नाँव
पीताम्बर को भाव दिखावे, कटि कोपीन कसै
गौर कृष्ण की दासी ‘मीराँ’ रसना कृष्ण बसै

Rana Ji Ab Na Rahungi Tori Hatki

वैराग्य
राणाजी! अब न रहूँगी तोरी हटकी
साधु-संग मोहि प्यारा लागै, लाज गई घूँघट की
पीहर मेड़ता छोड्यो अपनो, सुरत निरत दोउ चटकी
सतगुरु मुकर दिखाया घट का, नाचुँगी दे दे चुटकी
महल किला कुछ मोहि न चहिये, सारी रेसम-पट की
भई दिवानी ‘मीराँ’ डोलै, केस-लटा सब छिटकी

Ab Odhawat Hai Chadariya Vah Dekho Re Chalti Biriya

अंतिम अवस्था
अब ओढ़ावत है चादरिया, वह देखो रे चलती बिरिया
तन से प्राण जो निकसन लागे, उलटी नयन पुतरिया
भीतर से जब बाहर लाये, छूटे महल अटरिया
चार जने मिल खाट उठाये, रोवत चले डगरिया
कहे ’कबीर’ सुनो भाई साधो, सँग में तनिक लकड़िया