भरत की व्यथा
जननी मैं न जीऊँ बिन राम
राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम
प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम
‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम
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Braj Main Kanha Dhum Machai
होली
ब्रज में कान्हा धूम मचाई, ऐसी होरी रमाई
इतते आई सुघड़ राधिका, उतते कुँवर कन्हाई
हिलमिल के दोऊ फाग रमत है, सब सखियाँ ललचाई,
मिलकर सोर मचाई
राधेजी सैन दई सखियन के, झुंड-झुंड झट आई
रपट झपट कर श्याम सुन्दर कूँ, बैयाँ पकड़ ले जाई,
लालजी ने नाच नचाई
मुरली पीताम्बर छीन लियो है, सिर पर चुँदड़ी उढ़ाई
बिंदी तो भाल, नैनाँ सोहे कजरो, नक बसर पहराई,
लालजी ने नार बनाई
हार गई चन्द्रावलि राधा, जीत्या जदुपति राई
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, मेवा से गोद भराई,
नन्द घर बँटत बधाई
Mukhada Kya Dekhe Darpan Main
दया-धर्म
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, तेरे दया धरम नहीं मन में
कागज की एक नाव बनाई, छोड़ी गंगा-जल में
धर्मी कर्मी पार उतर गये, पापी डूबे जल में
आम की डारी कोयल राजी, मछली राजी जल में
साधु रहे जंगल में राजी, गृहस्थ राजी धन में
ऐंठी धोती पाग लपेटी, तेल चुआ जुलफन में
गली-गली की सखी रिझाई, दाग लगाया तन में
पाथर की इक नाव बनाई, उतरा चाहे छिन में
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, चढ़े वो कैसे रन में
He Sakhi Sun To Vrindawan Main
वृंदावन केलि
हे सखि सुन तो वृन्दावन में, बंसी श्याम बजावत है
सब साधु संत का दुख हरने, ब्रज में अवतार लिया हरि ने
वो ग्वाल-बाल को संग में ले, यमुना-तट धेनु चरावत है
सिर मोर-पंख का मुकुट धरे, मकराकृत कुण्डल कानों में
वक्षःस्थल पे वनमाल धरे, कटि में पट पीत सुहावत है
वृन्दावन में हरि रास करे, गोपिन के मन आनंद भरे
सब देव समाज जुड़े नभ में, ‘ब्रह्मानंद’ घना सुख पावत है
Duniya Main Kul Saat Dwip
भारतवर्ष
दुनियाँ में कुल सात द्वीप, उसमें जम्बू है द्वीप बड़ा
यह भारतवर्ष उसी में है, संस्कृति में सबसे बढ़ा चढ़ा
कहलाता था आर्यावर्त, प्राचीन काल में देश यही
सम्राट भरत थे कीर्तिमान, कहलाया भारतवर्ष वही
नाभिनन्दन थे ऋषभदेव, जिनमें यश, तेज, पराक्रम था
वासना विरक्त थे, परमहंस, स्वभाव पूर्णतः सात्विक था
सम्राट भरत इनके सुत थे, भगवत्सेवा में लीन रहे
उनका चरित्र था सर्वश्रेष्ठ, अनुसरण करे सुख शान्ति बहे
Bhojan Kare Shyam Kanan Main
वन-विहार
भोजन करे श्याम कानन में
ग्वाल-बाल संग हँसे हँसाये, मुदित सभी है मन में
छीके खोल सखा सब बैठे, यमुना तट पर सोहे
उनके मध्य श्याम-सुन्दर छबि, सबके मन को मोहे
जूठे का संकोच नहीं, सब छीन झपट के खायें
सभी निहारें मोहन मुखड़ा, स्वाद से भोजन पायें
छटा निराली नटनागर की, धरी वेणु कटि-पट में
घृत मिश्रित दधि-भात ग्रास को, पकड़े अपने कर में
यज्ञ-भोगता ग्वालों के सँग, वन में भोग लगाये
अद्भुत लीला निरख स्वर्ग के, देव अधिक हर्षाये
Shyam Dekh Darpan Main Bole
राधिका श्याम सौन्दर्य
श्याम देख दर्पण में बोले ‘सुनो राधिका प्यारी
आज बताओ मैं सुन्दर या तुम हो सुभगा न्यारी’
असमंजस में पड़ी राधिका, कौन अधिक रुचिकारी
‘हम का कहें कि मैं गोरी पर, तुम तो श्याम बिहारी’
जीत गई वृषभानु-दुलारी, मुग्ध हुए बनवारी
भक्तों के सर्वस्व राधिका-श्याम युगल मनहारी
Main Hari Patit Pawan Sune
पतित-पावन
मैं हरि पतित-पावन सुने
मैं पतित तुम पतित पावन दोइ बानक बने
व्याध, गनिका, गज, अजामिल, साखि निगमनि भने
और अधम अनेक तारे, जात कापै गने
जानि नाम अजानि लीन्हें, नरक सुरपुर मने
दास तुलसी सरन आयो, राखिये आपने
Mai Ri Main To Liyo Govind Mol
अनमोल गोविंद
माई री मैं तो लियो री गोविन्दो मोल
कोई कहै छाने, कोई कहै चोरी, लियो री बजंताँ ढोल
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अखियाँ खोल
कोई कहै महँगो कोई कहै सस्तो, लियो री अमोलक मोल
तन का गहणाँ सब ही दीना, दियो री बाजूबँद खोल
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, पुरब जनम को कोल
Main Kase Kahun Koi Mane Nahi
पाप कर्म
मैं कासे कहूँ कोई माने नहीं
बिन हरि नाम जनम है विरथा, शास्त्र पुराण कही
पशु को मार यज्ञ में होमे, निज स्वारथ सब ही
इक दिन आय अचानक तुमसे, ले बदला ये ही
पाप कर्म कर सुख को चाहे, ये कैसे निबहीं
कहे ‘कबीर’ कहूँ मैं जो कछु, मानो ठीक वही