Prat Kal Uthi Makhan Roti

बालकृष्ण की बान प्रातकाल उठि माखन रोटी, को बिनु माँगे दैहै अब उहि मेरे कुँवर कान्ह को, छिन-छिन गोदी लैहै कहियौ पथिक जाइ, घर आवहु, राम कृष्ण दोउ भैया दोउ बालक कत होत दुखारी, जिनके मो सी मैया ‘सूर’ पथिक सुनि, मोहि रैन-दिन, बढ्यो रहत उर सोच मेरो अलक-लड़ैतो मोहन, करत बहुत संकोच

Prat Bhayo Jago Gopal

प्रभाती प्रात भयौ, जागौ गोपाल नवल सुंदरी आई बोलत, तुमहिं सबै ब्रजबाल प्रगट्यौ भानु, मन्द भयौ चंदा, फूले तरुन तमाल दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजवनिता, गूँथि कुसुम बनमाल मुखहि धोई सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल ‘सूरदास’ प्रभु आनंद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल