श्री राधा प्राकट्य
प्रगटी नागरि रूप-निधान
निरख निरख सब कहे परस्पर, नहिं त्रिभुवन में आन
कृष्ण-प्रिया का रूप अद्वितीय, विधि शिव करे बखान
उपमा कहि कहि कवि सब हारे, कोटि कोटि रति-खान
‘कुंभनदास’ लाल गिरधर की, जोरी सहज समान

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