अंतिम अवस्था
अब ओढ़ावत है चादरिया, वह देखो रे चलती बिरिया
तन से प्राण जो निकसन लागे, उलटी नयन पुतरिया
भीतर से जब बाहर लाये, छूटे महल अटरिया
चार जने मिल खाट उठाये, रोवत चले डगरिया
कहे ’कबीर’ सुनो भाई साधो, सँग में तनिक लकड़िया
Category: Kabir
Pritam Aaye Pritam Aaye Aaj Mere Ghar Pritam Aaye
हरि दर्शन
प्रीतम आए प्रीतम आये, आज मेरे घर प्रीतम आये
रहत रहत मैं अँगना बुहारूँ, मोतियाँ माँग भराऊँ, भराऊँ
चरण पखार देख सुख पाऊँ, सब साधन बरसाऊँ
पाँच सखी मिल मंगल गाये, राग सरस मैं गाऊँ
करूँ आरती, प्रेम निछावर, पल-पल मैं बलि जाऊँ
कहे ‘कबीर’ धन भाग हमारा, परम पुरुष वर पाऊँ
Uth Jaag Musafir Bhor Bhai
चेतावनी
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है
जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है
अब नींद से अँखियाँ खोल जरा, ओ बेसुध प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीति नहीं, सब जागत है तू सोवत है
नादान, भुगत करनी अपनी, ओ पापी पाप में चैन कहाँ
जब पाप की गठरी सीस धरी, फिर सीस पकड़ क्यों रोवत है
जो कल करना, आज ही कर ले, करना जो आज अभी कर ले
चिड़िया खेती जब चुग लेगी, फिर पछताये क्या होवत है
Ab Tum Kab Simaroge Ram
हरिनाम स्मरण
अब तुम कब सुमरो गे राम, जिवड़ा दो दिन का मेहमान
गरभापन में हाथ जुड़ाया, निकल हुआ बेइमान
बालापन तो खेल गुमाया, तरूनापन में काम
बूढ़ेपन में काँपन लागा, निकल गया अरमान
झूठी काया झूठी माया, आखिर मौत निदान
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, क्यों करता अभिमान
Bhajo Re Bhaiya Ram Govind Hari
हरि कीर्तन
भजो रे भैया राम गोविन्द हरी
जप तप साधन कछु नहिं लागत, खरचत नहिं गठरी
संतति संपति सुख के कारण, जासे भूल परी
कहत ‘कबीर’ राम नहिं जा मुख, ता मुख धुल भरी
Karam Gati Tare Nahi Tari
कर्म विपाक
करम गति तारे नाहिं टरी
मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सोध के लगन धरी
सीता हरण, मरण दशरथ को, वन में विपति परी
नीच हाथ हरिचन्द बिकाने, बली पताल धरी
कोटि गाय नित पुण्य करत नृग, गिरगिट जोनि परी
पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर विपति परी
दुर्योधन को गर्व घटायो, जदुकुल नाश करी
राहु केतु अरु भानु चन्द्रमा, विधि संजोग परी
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, होनी नाहिं टरी
Mat Kar Moh Tu Hari Bhajan Ko Man Re
भजन महिमा
मत कर मोह तू, हरि-भजन को मान रे
नयन दिये दरसन करने को, श्रवण दिये सुन ज्ञान रे
वदन दिया हरि गुण गाने को, हाथ दिये कर दान रे
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, कंचन निपजत खान रे
Kahe Ko Tan Manjta Re Mati Main Mil Jana Hai
सत्संग महिमा
काहे को तन माँजता रे, माटी में मिल जाना है
एक दिन दूल्हा साथ बराती, बाजत ढोल निसाना है
एक दिन तो स्मशान में सोना, सीधे पग हो जाना है
सत्संगत अब से ही करले, नाहिं तो फिर पछताना है
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, प्रभु का ध्यान लगाना है
Mat Bandho Gathariya Apjas Ki
भक्ति रस
मत बाँधो गठरिया, अपजस की
यो संसार मेघ की छाया, करो कमाई हरि-रस की
जोर जवानी ढलक जायगी, बाल अवस्था दस दिन की
धर्मदूत जब फाँसी दारे, खबर लेत तेरी नस नस की
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, बात नहीं तेरे बस की
Kuch Lena Na Dena Magan Rahna
आत्मानंद
कछु लेना न देना मगन रहना
पाँच तत्त्व का बना पींजरा, जामे बोलत मेरी मैना
गहरी नदिया नाव पुरानी, केवटिया से मिले रहना
तेरा पीया तेरे घट में बसत है, सखी खोल कर देखो नैना
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, गुरु-चरण में लिपट रहना