Ter Suno Braj Raj Dulare

विनय टेर सुनो ब्रज राज दुलारे दीन-मलीन हीन सुभ गुण सों, आन पर्यो हूँ द्वार तिहारे काम, क्रोध अरु कपट, लोभ, मद, छूटत नहिं प्राण ते पियारे भ्रमत रह्यो इन संग विषय में, ‘सूरदास’ तव चरण बिसारे

Nandahi Kahat Jasoda Rani

मुख में सृष्टि नंदहि कहत जसोदा रानी माटी कैं मिस मुख दिखरायौ, तिहूँ लोक रजधानी स्वर्ग, पताल, धरनि, बन, पर्वत, बदन माँझ रहे आनी नदी-सुमेर, देखि भौंचक भई, याकी अकथ कहानी चितै रहे तब नन्द जुवति-मुख, मन-मन करत बिनानी सूरदास’ तब कहति जसोदा, गर्ग कही यह बानी

Prat Bhayo Jago Gopal

प्रभाती प्रात भयौ, जागौ गोपाल नवल सुंदरी आई बोलत, तुमहिं सबै ब्रजबाल प्रगट्यौ भानु, मन्द भयौ चंदा, फूले तरुन तमाल दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजवनिता, गूँथि कुसुम बनमाल मुखहि धोई सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल ‘सूरदास’ प्रभु आनंद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल

Murali Adhar Saji Balbir

मोहिनी मुरली मुरली अधर सजी बलबीर नाद सुनि वनिता विमोहीं, बिसरे उर के चीर धेनु मृग तृन तजि रहे, बछरा न पीबत छीर नैन मूँदें खग रहे ज्यौं, करत तप मुनि धीर डुलत नहिं द्रुम पत्र बेली, थकित मंद समीर ‘सूर’ मुरली शब्द सुनि थकि, रहत जमुना नीर

Maiya Ri Tu Inaka Janati

राधा कृष्ण प्रीति मैया री तू इनका जानति बारम्बार बतायी हो जमुना तीर काल्हि मैं भूल्यो, बाँह पकड़ी गहि ल्यायी हो आवत इहाँ तोहि सकुचति है, मैं दे सौंह बुलायी हो ‘सूर’ स्याम ऐसे गुण-आगर, नागरि बहुत रिझायी हो

Rani Tero Chir Jivo Gopal

चिरजीवो गोपाल रानी तेरो चिरजीवो गोपाल बेगि बढ्यो बड़ी होय बिरध लट, महरी मनोहर बाल, उपजि पर्यो यह कूखि भाग्यबल, समुद्र सीप जैसे लाल सब गोकुल के प्राण जीवनधर, बैरन के उर साल ‘सूर’ किते जिय सुख पावत है, देखत श्याम तमाल राज अंजन लागो मेरी अँखियन, मिटे दोष जंजाल

Sabhi Taj Bhajiye Nand Kumar

श्री कृष्ण स्मरण सभी तज भजिये नंदकुमार और भजें ते काम सरे नहिं, मिटे न भव जंजार यह जिय जानि, इहीं छिन भजि, दिन बीते जात असार ‘सूरदास’ औसर मत चूकै, पाये न बारम्बार

Ham Bhaktan Ke Bhakta Hamare

भक्त के भगवान हम भक्तन के, भक्त हमारे सुन अर्जुन, परतिग्या मेरी, यह व्रत टरत न टारे भक्तै काज लाज हिय धरिकैं, पाय-पियादे धाऊँ जहँ-जहँ भीर परै भक्तन पै, तहँ-तहँ जाइ छुड़ाऊँ जो मम भक्त सों बैर करत है, सो निज बैरी मेरो देखि बिचारि, भक्तहित-कारन, हाँकत हौं रथ तेरो जीते जीत भक्त अपने की, […]

Aali Mhane Lage Vrindawan Niko

वृन्दावन आली! म्हाँने लागे वृन्दावन नीको घर घर तुलसी ठाकुर पूजा, दरसण गोविन्दजी को निरमल नीर बहे जमना को, भोजन दूध दही को रतन सिंघासण आप बिराजे, मुगट धरै तुलसी को कुंजन कुंजन फिरै राधिका, सबद सुणै मुरली को ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, भजन बिना नर फीको

Jogi Mat Ja Mat Ja Mat Ja

विरह व्यथा जोगी मत जा, मत जा, मत जा, पाँव पड़ू मैं तोरे प्रेम भगति को पंथ है न्यारो, हमकूँ गैल बता जा अगर चंदन की चिता बनाऊँ, अपने हाथ जला जा जल-जल भई भस्म की ढेरी, अपने अंग लगा जा ‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरिधर नागर, जोत में जोत मिला जा