Ab Lo Nasani

भजन के पद
शुभ संकल्प
अब लौं नसानी, अब न नसैंहौं
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैंहौं
पायउँ नाम चारु चिंतामनि, उर करतें न खसैंहौं
श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैंहौं
परबस जानी हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैंहौं
मन मधुकर पन करके ‘तुलसी’, रघुपति पद-कमल बसैंहौं

Jaki Gati Hai Hanuman Ki

हनुमान आश्रय
जाकी गति है हनुमान की
ताकी पैज पूजि आई, यह रेखा कुलिस पषान की
अघटि-घटन, सुघटन-विघटन, ऐसी विरुदावलि नहिं आन की
सुमिरत संकट सोच-विमोचन, मूरति मोद-निधान की
तापर सानुकूल गिरिजा, शिव, राम, लखन अरु जानकी
‘तुलसी’ कपि की कृपा-विलोकनि, खानि सकल कल्यान की

Meri Yah Abhilash Vidhata

अभिलाषा
मेरी यह अभिलाष विधाता
कब पुरवै सखि सानुकूल ह्वैं हरि सेवक सुख दाता
सीता सहित कुसल कौसलपुरआय रहैं सुत दोऊ
श्रवन-सुधा सम वचन सखी कब, आइ कहैगो कोऊ
जनक सुता कब सासु कहैं मोहि, राम लखन कहैं मैया
कबहुँ मुदित मन अजर चलहिंगे, स्याम गौर दोउ भैया
‘तुलसिदास’ यह भाँति मनोरथ करत प्रीति अति बाढ़ी
थकित भई उर आनि राम छबि मनहु चित्र लखि काढ़ी

Ese Ramdin Hitkari

हितकारी राम
ऐसे राम दीन हितकारी
अति कोमल करुना निधान बिनु कारन पर-उपकारी
साधन हीन दीन निज अघ बस सिला भई मुनि नारी
गृहते गवनि परसि पद-पावन घोर सापते तारी
अधम जाति शबरी नारी जड़ लोक वेद ते न्यारी
जानि प्रीत दै दरस कृपानिधि सोउ रघुनाथ उबारी
रिपु को अनुज विभिषन निशिचर, कौन भजन अधिकारी
सरन गये आगे ह्वै लीन्हा, भेंट्यो भुजा पसारी
कह लगि कहौं दीन अनगिनत, जिनकी विपति निवारी
कलि-मल-ग्रसित दास ‘तुलसी’ पर काहे कृपा बिसारी

Jake Priy Na Ram Vedehi

राम-पद-प्रीति
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिये ताहि कोटि बैरीसम, जद्यपि परम सनेही
तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी
बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज – बनितनि, भये मुद – मंगलकारी
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं
अंजन कहाँ आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं
‘तुलसी’ सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो
जासों होइ सनेह राम – पद, एतो मतो हमारो

Mero Bhalo Kiya Ram, Apni Bhalai

उदारता
मेरो भलो कियो राम, आपनी भलाई
मैं तो साईं-द्रोही पै, सेवक- हित साईं
रामसो बड़ो है कौन, मोसो कौन छोटो
राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो
लोक कहै रामको, गुलाम हौं कहावौं
एतो बड़ो अपराध भौ न मन बावों
पाथ-माथे चढे़तृन ‘तुलसी’ ज्यों नीचो
बोरत न वारि ताहि जानि आपुसींचो

Aiso Ko Udar Jagmahi

राम की उदारता
ऐसो को उदार जग माहीं
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरिस कोउ नाहीं
जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ग्यानी
सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी
जो संपत्ति दस सीस अरपि करि रावन सिव पहँ लीन्हीं
सोई संपदा विभीषन कहँअति, सकुच सहित हरि दीन्हीं
‘तुलसिदास’ सब भांति सकल सुख, जो चाहसि मन मेरो
तौ भजु राम, काम सब पूरन करैं कृपानिधि तेरो

Jagiya Raghunath Kunwar Panchi Van Bole

प्रभाती
जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले
चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई
त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले
प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो
भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले
ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान
जागन की बेर भई, नयन पलक खोले

Main Hari Patit Pawan Sune

पतित-पावन
मैं हरि पतित-पावन सुने
मैं पतित तुम पतित पावन दोइ बानक बने
व्याध, गनिका, गज, अजामिल, साखि निगमनि भने
और अधम अनेक तारे, जात कापै गने
जानि नाम अजानि लीन्हें, नरक सुरपुर मने
दास तुलसी सरन आयो, राखिये आपने

Kab Dekhongi Nayan Vah Madhur Murati

राम का माधुर्य
कब देखौंगी नयन वह मधुर मूरति
राजिव दल नयन, कोमल-कृपा अयन, काम बहु छबि अंगनि दूरति
सिर पर जटा कलाप पानि सायक चाप उर रुचिर वनमाल मूरति
‘तुलसिदास’ रघुबीर की सोभा सुमिरि, भई मगन, नहीं तन की सूरति