Udho Karaman Ki Gati Nyari

कर्म की गति ऊधौ करमन की गति न्यारी सब नदियाँ जल भरि-भरि रहियाँ, सागर केहि विधि खारी उज्जवल पंख दिये बगुला को, कोयल केहि गुन कारी सुन्दर नयन मृगा को दीन्हें, वन वन फिरत उजारी मूरख को है राजा कीन्हों, पंडित फिरत भिखारी ‘सूर’ श्याम मिलने की आशा, छिन छिन बीतत भारी

Khelan Ko Hari Duri Gayo Ri

यशोदा की चिन्ता खेलन कौं हरि दूरि गयौ री संग-संग धावत डोलत हैं, कह धौं बहुत अबेर भयौ री पलक ओट भावत नहिं मोकौं, कहा कहौं तोहि बात नंदहिं तात-तात कहि बोलत, मोहि कहत है मात इतनो कहत स्याम-घन आये, ग्वाल सखा सब चीन्हे दौरि जाइ उर लाइ ‘सूर’ प्रभु, हरषि जसोदा लीन्हे

Jagahu Jagahu Nand Kumar

प्रभाती जागहु जागहु नंद-कुमार रवि बहु चढ्यो रैन सब निघटी, उचटे सकल किवार ग्वाल-बाल सब खड़े द्वार पै, उठ मेरे प्रानअधार घर घर गोपी दही बिलोवै, कर कंकन झंकार साँझ दुहां तुम कह्यो गाईकौं, तामें होति अबार ‘सूरदास’ प्रभु उठे तुरत ही, लीला अगम अपार

Deh Dhare Ko Karan Soi

अभिन्नता देह धरे कौ कारन सोई लोक-लाज कुल-कानि न तजिये, जातौ भलो कहै सब कोई मात पित के डर कौं मानै, सजन कहै कुटुँब सब सोई तात मात मोहू कौं भावत, तन धरि कै माया बस होई सुनी वृषभानुसुता! मेरी बानी, प्रीति पुरातन राखौ गोई ‘सूर’ श्याम नागारिहि सुनावत, मैं तुम एक नाहिं हैं दोई

Prat Bhayo Jago Gopal

प्रभाती प्रात भयौ, जागौ गोपाल नवल सुंदरी आई बोलत, तुमहिं सबै ब्रजबाल प्रगट्यौ भानु, मन्द भयौ चंदा, फूले तरुन तमाल दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजवनिता, गूँथि कुसुम बनमाल मुखहि धोई सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल ‘सूरदास’ प्रभु आनंद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल

Mero Mai Hathi Ye Bal Govinda

हठी बाल कृष्ण मेरौ माई हठी ये बाल-गोबिंदा अपने कर गहि गगन बतावत, खेलन माँगे चंदा बासन मैं जल धर्यो जसोदा, हरि कौं आनि दिखावे रूदन करत ढूँढत नहिं पावत, चंद धरनि क्यों आवे मधु मेवा पकवान मिठाई, माँगि लेहु मेरे छौना चकई डोरी पाट के लटकन, लेहु मेरे लाल खिलौना संत उबारन असुर सँहारन, […]

Mo Sam Kon Kutil Khal Kami

शरणागति मो सम कौन कुटिल खल कामी जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी हरिजन छाँड़ि हरी-विमुखन की, निसिदिन करत गुलामी पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी ‘सूर’ पतित को ठौर कहाँ है, सुनिए श्रीपति स्वामी

Shyam Kahat Puja Giri Mani

अन्नकूट श्याम कहत पूजा गिरि मानी जो तुम भाव-भक्ति सों अरप्यो, देवराज सब जानी तुम देखत भोजन सब कीनो, अब तुम मोहि प्रत्याने बड़ो देव गिरिराज गोवर्धन, इनहि रहो तुम माने सेवा भली करी तुम मेरी, देव कही यह बानी ‘सूर’ नंद मुख चुंबत हरि को, यह पूजा तुम ठानी

Shyam Bina Yah Koun Kare

श्याम की मोहिनी स्याम बिना यह कौन करै चित वहिं तै मोहिनी लगावै, नैक हँसनि पै मनहि हरै रोकि रह्यौ प्रातहिं गहि मारग, गिन करि के दधि दान लियौ तन की सुधि तबहीं तैं भूली, कछु कहि के दधि लूट लियौ मन के करत मनोरथ पूरन, चतुर नारि इहि भाँति कहैं ‘सूर’ स्याम मन हर्यौ […]

Ab To Nibhayan Saregi Rakh Lo Mhari Laj

शरणागति अब तो निभायाँ सरेगी, रख लो म्हारी लाज प्रभुजी! समरथ शरण तिहारी, सकल सुधारो काज भवसागर संसार प्रबल है, जामे तुम ही जहाज निरालम्ब आधार जगत्-गुरु, तुम बिन होय अकाज जुग जुग भीर हरी भक्तन की, तुम पर उनको नाज ‘मीराँ’ सरण गही चरणन की, पत राखो महाराज