Karam Gati Tare Nahi Tari
कर्म विपाक करम गति तारे नाहिं टरी मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सोध के लगन धरी सीता हरण, मरण दशरथ को, वन में विपति परी नीच हाथ हरिचन्द बिकाने, बली पताल धरी कोटि गाय नित पुण्य करत नृग, गिरगिट जोनि परी पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर विपति परी दुर्योधन को गर्व घटायो, जदुकुल नाश […]
Mat Kar Moh Tu Hari Bhajan Ko Man Re
भजन महिमा मत कर मोह तू, हरि-भजन को मान रे नयन दिये दरसन करने को, श्रवण दिये सुन ज्ञान रे वदन दिया हरि गुण गाने को, हाथ दिये कर दान रे कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, कंचन निपजत खान रे
Bhajan Ko Namahi Nam Bhayo
भजन महिमा भजन को नामहि नाम भयो जासों द्रवहि न प्राननाथ, वह कैसे भजन भयो कर माला, मुख नाम, पै न मन में कोई भाव रह्यो केवल भयो प्रदरसन, लोगन हूँ ने भगत कह्यो पायो मानुष जन्म, वृथा ऐसे ही समय गयो मन में साँची लगन होय सो, साँचो भजन कह्यो बिरह व्यथा में बीतहिं […]
Ajahu Na Nikase Pran Kathor
आतुरता अजहुँ न निकसे प्राण कठोर दरसन बिना बहुत दिन बीते, सुन्दर प्रीतम मोर चार प्रहर, चारों युग बीते, भई निराशा घोर अवधि गई अजहूँ नहिं आये, कतहुँ रहे चितचोर कबहुँ नैन, मन -भर नहिं देखे, चितवन तुमरी ओर ‘दादू’ ऐसे आतुर विरहिणि, जैसे चाँद चकोर
Itna To Karna Swami Jab Pran Tan Se Nikale
विनती इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से निकले श्री यमुनाजी का तट हो, स्थान वंशी-वट हो मेरा साँवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकलें श्री वृन्दावन का थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो विष्णु-चरण का जल हो, जब प्राण तन से निकलें […]
Kyon Dhanya Grihasthashram Kahlata
धन्य गृहस्थाश्रम क्यों धन्य गृहस्थाश्रम कहलाता मानव जीवन के तीन लक्ष्य, धन, काम, धर्म वह पाता सौमनस्य हो पति-पत्नी में, स्वर्ग बनाये घर को परोपकार, परहित सेवा, कर्तव्य मिलादे हरि को प्रभु का मंदिर समझे गृह को, भाव शुद्धता मन में हरि-कीर्तन प्रातः सन्ध्या हो, व सदाचार जीवन में पूजन एवं कृष्ण-कथा हो, साधु, सन्त […]
Ja Ko Manvranda Vipin Haryo
वंदनावन-महिमा जाको मन वृन्दा विपिन हर्यो निरिख निकुंज पुंज-छवि राधे, कृष्ण नाम उर धर्यो स्यामा स्याम स्वरूप सरोवर, परी जगत् बिसर्यो कोटि कोटि रति काम लजावै, गोपियन चित्त हर्यो ‘श्रीभट’ राधे रसिकराय तिन्ह, सर्वस दै निबर्यो
Tan Rakta Mans Ka Dhancha Hai
चेतावनी तन रक्त माँस का ढाँचा है, जो ढका हुआ है चमड़े से श्रृंगार करे क्या काया का, जो भरी हुई है दुर्गन्धों से खाये पीये कितना बढ़िया, मल-मूत्र वहीं जो बन जाता ऐसे शरीर की रक्षा में, दिन रात परिश्रम है करता मन में जो रही वासनाएँ, वे अन्त समय तक साथ रहें मृत्योपरांत […]
Narhari Chanchal Hai Mati Meri
भक्ति भाव नरहरि चंचल है मति मेरी, कैसी भगति करूँ मैं तेरी सब घट अंतर रमे निरंतर मैं देखन नहिं जाना गुण सब तोर, मोर सब अवगुण मैं एकहूँ नहीं माना तू मोहिं देखै, हौं तोहि देखूँ, प्रीति परस्पर होई तू मोहिं देखै, तोहि न देखूँ, यह मति सब बुधि खोई तेरा मेरा कछु न […]
Pulakit Malay Pawan Manthar Gati
वसंतोत्सव पुलकित मलय-पवन मंथर गति, ऋतु बसंत मन भाये मधुप-पुंज-गुंजित कल-कोकिल कूजित हर्ष बढ़ाये चंदन चर्चित श्याम कलेवर पीत वसन लहराये रंग बसंती साड़ी में, श्री राधा सरस सुहाये भाव-लीन अनुपम छबिशाली, रूप धरे नँद-नंदन घिरे हुवे गोपीजन से वे क्रीड़ा रत मन-रंजन गोप-वधू पंचम के ऊँचे स्वर में गीत सुनाती रसनिधि मुख-सरसिज को इकटक […]