Jaki Gati Hai Hanuman Ki

हनुमान आश्रय जाकी गति है हनुमान की ताकी पैज पूजि आई, यह रेखा कुलिस पषान की अघटि-घटन, सुघटन-विघटन, ऐसी विरुदावलि नहिं आन की सुमिरत संकट सोच-विमोचन, मूरति मोद-निधान की तापर सानुकूल गिरिजा, शिव, राम, लखन अरु जानकी ‘तुलसी’ कपि की कृपा-विलोकनि, खानि सकल कल्यान की

Mamta Tu N Gai Mere Man Te

वृद्ध अवस्था ममता तू न गई मेरे मन तें पाके केस जनम के साथी, लाज गई लोकन तें तन थाके कर कंपन लागे, ज्योति गई नैनन तें श्रवण वचन न सुनत काहू के, बल गये सब इन्द्रिन तें टूटे दाँत वचन नहिं आवत, सोभा गई मुखन तें भाई बंधु सब परम पियारे, नारि निकारत घर […]

Ab Me Nachyo Bahut Gopal

मोह माया अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाल काम क्रोध को पहिर चोलनो, कंठ विषय की माल महा मोह के नूपुर बाजत, निन्दा शबद रसाल भरम भर्यो मन-भयो पखावज, चलत कुसंगत चाल तृष्णा नाद करत घट भीतर, नाना विधि दे ताल माया को कटि फैंटा बाँध्यो, लोभ तिलक दियो भाल कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल […]

Kaha Kahati Tu Mohi Ri Mai

मनोवेग कहा कहति तू मोहि री माई नंदनँदन मन हर लियो मेरौ, तब तै मोकों कछु न सुहाई अब लौं नहिं जानति मैं को ही, कब तैं तू मेरे ढ़िंग आई कहाँ गेह, कहँ मात पिता हैं, कहाँ सजन गुरुजन कहाँ भाई कैसी लाज कानि है कैसी, कहा कहती ह्वै ह्वै रिसहाई अब तौ ‘सूर’ […]

Gwalin Jo Dekhe Ghar Aay

माखन चोरी ग्वालिन जो देखे घर आय माखन खाय चुराय श्याम तब, आपुन रही छिपाय भीतर गई तहाँ हरि पाये, बोले अपने घर मैं आयो भूल भई, गोरस में चींटी, काढ़न में भरमायो सुन-सुन वचन चतुर मोहन के, ग्वालिनि मुड़ मुसकानी ‘सूरदास’ प्रभु नटनागर की, सबै बात हम जानी

Jewat Kanh Nand Ju Ki Kaniya

बालकृष्ण को जिमाना जेंवत कान्ह नन्दजू की कनियाँ कछुक खात कछु धरनि गिरावत, छबि निरखत नँद–रनियाँ बरी, बरा, बेसन बहु भाँतिन, व्यंजन विविध अँगनियाँ आपुन खात नंद-मुख नावत, यह सुख कहत न बनियाँ आपुन खात खवावत ग्वालन, कर माखन दधि दोनियाँ सद माखन मिश्री मिश्रित कर, मुख नावत छबि धनियाँ जो सुख महर जसोदा बिलसति, […]

Dekhe Ham Hari Nangam Nanga

श्याम स्वरुप देखे हम हरि नंगम्नंगा आभूषण नहिं अंग बिराजत, बसन नहीं, छबि उठत तरंगा अंग अंग प्रति रूप माधुरी, निरखत लज्जित कोटि अनंगा किलकत दसन दधि मुख लेपन, ‘सूर’ हँसत ब्रज जुवतिन संगा

Pati Madhuwan Te Aai

श्याम की पाती पाती मधुवन तै आई ऊधौ हरि के परम सनेही, ताके हाथ पठाई कोउ पढ़ति फिरि फिरि ऊधौ, हमको लिखी कन्हाई बहूरि दई फेरि ऊधौ कौ, तब उन बाँचि सुनाई मन में ध्यान हमारौ राख्यो, ‘सूर’ सदा सुखदाई

Braj Ghar Ghar Pragati Yah Bat

माखन चोरी ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात दधि-माखन चोरी करि ले हरि, ग्वाल-सखा सँग खात ब्रज-बनिता यह सुनि मन हर्षित, सदन हमारें आवैं माखन खात अचानक पावैं, भुज हरि उरहिं छुवावै मन ही मन अभिलाष करति सब, ह्रदय धरति यह ध्यान ‘सूरदास’ प्रभु कौं हम दैहों, उत्तम माखन खान

Maiya Kabahi Badhegi Choti

बालकृष्ण माधुर्य मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी मोटी काढ़त गुहत नहावत पोंछत, नागिन सी भ्वै लोटी काचो दूध पिवावति पचि पचि, देति न माखन रोटी ‘सूरदास’ चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी