Om Jay Ganpati Deva
गणपति की आरती ॐ जय गणपति देवा, प्रभु जय गणपति देवा जयति शिवा-शिव नन्दन, सन्त करे सेवा —-ॐ जय…… अघ नाशक, वर दाता, भक्तों के भूषण —-प्रभु भक्तों…… ॠद्धि-सिद्धि के दाता, दूर करें दूषण —-ॐ जय…… श्रुति अरु यज्ञ विभूषित, विघ्नों के हर्ता —-प्रभु विघ्नों …… सुख-निधि शांति-निकेतन, बुद्धि विमलकर्ता —-ॐ जय …… सुर, नर, […]
Mangal Aarti Divya Yugal Ki
युगल किशोर आरती मंगल आरति दिव्य युगल की, मंगल प्रीति रीति है उनकी मंगल कान्ति हँसनि दसनन की, मंगल मुरली मीठी धुन की मंगल बनिक त्रिभंगी हरि की, मंगल चितवनि मृगनयनी की मंगल सिर चंद्रिका मुकुट की, मंगल छबि नैननि में अटकी मंगल शोभा पियरे पटकी, मंगल आभा नील-वसन की मंगल आभा कमलनयन की, मंगल […]
Janani Main Na Jiu Bin Ram
भरत की व्यथा जननी मैं न जीऊँ बिन राम राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम ‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम
Man Pachite Hai Avsar Bite
नश्वर माया मन पछितै है अवसर बीते दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम, वचन अरु हीते सहसबाहु, दसवदन आदि नृप, बचे न काल बलीते हम-हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते सुत-बनितादि जानि स्वारथ रत, न करू नेह सबही ते अंतहुँ तोहिं तजैंगे पामर! तू न तजै अब ही ते अब नाथहिं अनुरागु, जागु […]
Ab To Pragat Bhai Jag Jani
प्रेमानुभूति अब तो पगट भई जग जानी वा मोहन सों प्रीति निरंतर, क्यों निबहेगी छानी कहा करौं वह सुंदर मूरति, नयननि माँझि समानी निकसत नाहिं बहुत पचिहारी, रोम-रोम उरझानी अब कैसे निर्वारि जाति है, मिल्यो दूध ज्यौं पानी ‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, उर अंतर की जानी
Kahan Lage Mohan Maiya Maiya
कहन-लागे-मोहन मैया मैया नंद महर सौ बाबा-बाबा, अरु हलधर सौं भैया ऊँचे चढ़ि चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया दूर खेलन जिनि जाहु लला रे, मारेगी कोउ गैया गोपी-ग्वाल करत कौतूहल, घर घर बजति बधैया ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हे दरस कौ, चरननि की बलि जैया
Gwalin Tab Dekhe Nand Nandan
गोपियों का प्रेम ग्वालिन तब देखे नँद-नंदन मोर मुकुट पीताम्बर काचे, खौरि किये तनु चन्दन तब यह कह्यो कहाँ अब जैहौं, आगे कुँवर कन्हाई यह सुनि मन आनन्द बढ़ायो, मुख कहैं बात डराई कोउ कोउ कहति चलौ री जाई, कोउ कहै फिरि घर जाई कोउ कहति कहा करिहै हरि, इनकौ कहा पराई कोउ कोउ कहति […]
Ja Par Dinanath Dhare
हरि कृपा जा पर दीनानाथ ढरै सोइ कुलीन, बड़ो सुन्दर सोई, जा पर कृपा करै रंक सो कौन सुदामा हूँ ते, आप समान करै अधिक कुरूप कौन कुबिजा ते, हरि पति पाइ तरै अधम है कौन अजामिल हूँ ते, जम तहँ जात डरै ‘सूरदास’ भगवंत-भजन बिनु, फिरि फिरि जठर परै
Dinan Dukh Haran Dev Santan Hitkari
भक्त के भगवान दीनन दुख हरन देव संतन हितकारी ध्रुव को हरि राज देत, प्रह्लाद को उबार लेत भगत हेतु बाँध्यो सेतु, लंकपुरी जारी तंदुल से रीझ जात, साग पात आप खात शबरी के खाये फल, खाटे मीठे खारी गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दुःशासन चीर खस्यो सभा बीच कृष्ण कृष्ण, द्रौपदी पुकारी इतने हरि […]
Patit Pawan Virad Tumharo
विनय पतित पावन बिरद तुम्हारो, कौनों नाम धर्यौ मैं तो दीन दुखी अति दुर्बल, द्वारै रटत पर्यौ चारि पदारथ दिये सुदामहि, तंदुल भेंट धर्यौ द्रुपद-सुता की तुम पत राखी, अंबर दान कर्यौ संदीपन को सुत प्रभु दीने, विद्या पाठ कर्यौ ‘सूर’ की बिरियाँ निठुर भये प्रभु, मेरौ कछु न सर्यौ