Ab Lo Nasani

भजन के पद
शुभ संकल्प
अब लौं नसानी, अब न नसैंहौं
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैंहौं
पायउँ नाम चारु चिंतामनि, उर करतें न खसैंहौं
श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैंहौं
परबस जानी हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैंहौं
मन मधुकर पन करके ‘तुलसी’, रघुपति पद-कमल बसैंहौं

Jankinath Sahay Kare Tab

रामाश्रय
जानकीनाथ सहाय करे, तब कौन बिगाड़ सके नर तेरो
सूरज, मंगल, सोम, भृगुसुत, बुध और गुरु वरदायक तेरो
राहु केतु की नाहिं गम्यता, तुला शनीचर होय है चेरो
दुष्ट दुशासन निबल द्रौपदी, चीर उतारण मंत्र विचारो
जाकी सहाय करी यदुनन्दन, बढ़ गयो चीरको भाग घनेरो
गर्भकाल परीक्षित राख्यो, अश्वत्थामा को अस्त्र निवार्यो
भारत में भूरही के अंडा, तापर गज को घंटो गेर्यो
जिनकी सहाय करे करूणानिधि, उनको जग में भाग्य घनेरो
रघुवंशी संतन सुखदायी, ‘तुलिदास’ चरनन को चेरो

Sis Jata Ur Bahu Visal

राम से मोह
सीस जटा उर बाहु विसाल, विलोचन लाल, तिरीछी सी भौहें
बान सरासन कंध धरें, ‘तुलसी’ बन-मारग में सुठि सौहें
सादर बारहिं बार सुभायँ चितै, तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं
पूछति ग्राम वधु सिय सौं, कहौ साँवरे से सखि रावरे कौ हैं

Kaha Sukh Braj Ko So Sansar

ब्रज-महिमा
कहाँ सुख ब्रज कौ सौ संसार
कहाँ सुखद बंसी-वट जमुना, यह मन सदा विचार
कहाँ बन धाम कहाँ राधा सँग, कहाँ संग ब्रज वाम
कहाँ विरह सुख बिन गोपिन सँग, ‘सूर’ स्याम मन साम

Chadi Man Hari Vimukhan Ko Sang

प्रबोधन
छाड़ि मन, हरि-विमुखन को संग
जिनके संग कुमति उपजत है, परत भजन में भंग
कहा होत पय-पान कराए, विष नहिं तजत भुजंग
कागहिं कहा कपूर चुगाए, स्वान न्हवाए गंग
खर कौं कहा अरगजा-लेपन मरकट भूषन अंग
गज कौं कहा सरित अन्हवाए, बधुरि धरै वह ढंग
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतो करत निषंग
‘सूरदास’ कारी कामरि पै, चढ़त न दूजौ रंग

Ter Suno Braj Raj Dulare

विनय
टेर सुनो ब्रज राज दुलारे
दीन-मलीन हीन सुभ गुण सों, आन पर्यो हूँ द्वार तिहारे
काम, क्रोध अरु कपट, लोभ, मद, छूटत नहिं प्राण ते पियारे
भ्रमत रह्यो इन संग विषय में, ‘सूरदास’ तव चरण बिसारे

Nainan Nirkhi Syam Swarup

विराट स्वरूप
नैनन निरखि स्याम-स्वरूप
रह्यौ घट-घट व्यापि सोई, जोति-रूप अनूप
चरन सातों लोक जाके, सीस है आकास
सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पावक, ‘सूर’ तासु प्रकास

Braj Ghar Ghar Pragati Yah Bat

माखन चोरी
ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात
दधि-माखन चोरी करि ले हरि, ग्वाल-सखा सँग खात
ब्रज-बनिता यह सुनि मन हर्षित, सदन हमारें आवैं
माखन खात अचानक पावैं, भुज हरि उरहिं छुवावै
मन ही मन अभिलाष करति सब, ह्रदय धरति यह ध्यान
‘सूरदास’ प्रभु कौं हम दैहों, उत्तम माखन खान

Maiya Main Nahi Makhan Khayo

माखन चोरी
मैया मैं नहिं माखन खायौ
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायौ
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचे धरि लटकायौ
हौ जु कहत, नन्हें कर अपने, मैं कैसे करि पायौ
मुख दधि पौंछि बुद्धि इक कीन्हीं, दोना पीठि दुरायौ
डारि साट मुसकाई जसोदा, स्यामहिं कण्ठ लगायौ
बाल विनोद मोद मन मोह्यो, भक्ति प्रताप दिखायौ
‘सूरदास’ जसुमति कौ यह सुख, सिव ब्रह्म नहिं पायौ

Radha Nain Neer Bhari Aai

मिलन उत्सुकता
राधा नैन नीर भरि आई
कबहौं स्याम मिले सुन्दर सखि, यदपि निकट है आई
कहा करौं केहि भाँति जाऊँ अब, देखहि नहिं तिन पाई
‘सूर’ स्याम सुन्दर धन दरसे, तनु की ताप बुझाई