Kari Gopal Ki Hoi

प्रारु करी गोपाल की होई जो अपनौं पुरुषारथ मानत, अति झूठौ है सोई साधन, मंत्र, जंत्र, उद्यम, बल, ये सब डारौ धोई जो कछु लिखि राखी नँदनंदन, मेटि सकै नहिं कोई दुख-सुख लाभ-अलाभ समुझि तुम, कतहिं मरत हौ रोई ‘सूरदास’ स्वामी करुनामय, स्याम चरन मन पोई

Chalat Lal Penjani Ke Chai

बालकृष्ण लीला चलत लाल पैंजनि के चाइ पुनि-पुनि होत नयौ-नयौ आनँद, पुनि पुनि निरखत पाँइ छोटौ बदन छोटि यै झिंगुली, कटि किंकिनी बनाइ राजत जंत्र हार केहरि नख, पहुँची रतन जराइ भाल तिलक अरु स्याम डिठौना, जननी लेत बलाइ तनक लाल नवनीत लिए कर, ‘सूरदास’ बलि जाइ

Jo Ham Bhale Bure To Tere

शरणागति जो हम भले-बुरे तो तेरे तुमहिं हमारी लाज बड़ाई, विनती सुनु प्रभु मेरे सब तजि तव सरनागत आयो, निज कर चरन गहे रे तव प्रताप बल बदत न काहू, निडर भये घर चेरे और देव सब रंक भिखारी, त्यागे बहुत अनेरे ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरि कृपा ते, पाये सुख जु घनेरे

Nisi Din Barsat Nain Hamare

विरह व्यथा निसि दिन बरसत नैन हमारे सदा रहत पावस-ऋतु हम पर, जब तें श्याम सिधारे अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे कचुंकि-पट सूखत नहीं कबहूँ, उर बिच बहत पनारे आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे ‘सूरदास’ अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे

Braj Ke Birahi Log Dukhare

वियोग ब्रज के बिरही लोग दुखारे बिन गोपाल ठगे से ठाढ़े, अति दुरबल तनु कारे नन्द जसोदा मारग जोवत, नित उठि साँझ सकारे चहुँ दिसि ‘कान्ह कान्ह’ करि टेरत, अँसुवन बहत पनारे गोपी गाय ग्वाल गोसुत सब, अति ही दीन बिचारे ‘सूरदास’ प्रभु बिन यों सोभित, चन्द्र बिना ज्यों तारे

Maiya Main To Chand Khilona

कान्हा की हठ मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं जैहौं, लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं सुरभी कौ पे पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं ह्वैहौं पूत नंद बाबा कौ, तेरौ सुत न कहैहौं आगै आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुल्हनिया दैहौं तेरी सौं, मेरी सुनि […]

Radha Te Hari Ke Rang Ranchi

अभिन्नता राधा! मैं हरि के रंग राँची तो तैं चतुर और नहिं कोऊ, बात कहौं मैं साँची तैं उन कौ मन नाहिं चुरायौ, ऐसी है तू काँची हरि तेरौ मन अबै चुरायौ, प्रथम तुही है नाची तुम औ’ स्याम एक हो दोऊ, बात याही तो साँची ‘सूर’ श्याम तेरे बस राधा! कहति लीक मैं खाँची

Sab Din Gaye Vishay Ke Het

विस्मरण सब दिन गये विषय के हेत तीनों पन ऐसे ही बीते, केस भये सिर सेत रूँधी साँस, मुख बैन न आवत चन्द्र ग्रसहि जिमि केत तजि गंगोदक पियत कूप जल, हरि तजि पूजत प्रेत करि प्रमाद गोविंद, बिसार्यौ, बूड्यों कुटुँब समेत ‘सूरदास’ कछु खरच न लागत, रामनाम सुख लेत

Ham Na Bhai Vrindawan Renu

वृन्दावन हम न भईं वृंदावन-रेनु जिनपे चरनन डोलत नित प्रति, श्याम चरावैं धेनु हमतें धन्य परम ये द्रुम-बन, बाल बच्छ अरु धेनु ‘सूर’ ग्वाल हँसि बोलत खेलत, संग ही पीवत धेनु

Aeri Main To Darad Diwani

विरह व्यथा ऐरी मैं तो दरद दिवानी, मेरो दरद न जाने कोय घायल की गति घायल जाने, जो कोई घायल होय जोहरी की गति जोहरी जाने, जो कोई जोहरी होय सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस विध होय गगन मँडल पर सेज पिया की, किस विध मिलणा होय दरद की मारी बन-बन डोलूँ, वैद मिल्यो […]