Koshalpur Me Bajat Badhai

श्री राम जन्म
कौशलपुर में बजत बधाई
सुंदर सुत जायो कौशल्या, प्रगट भये रघुराई
जात कर्म दशरथ नृप कीनो, अगणित धेनु दिवाई
गज तुरंग कंचन मणि भूषण, दीन्हे मन हरषाई
देत असीस सकल नरनारी, चिरजियो सतभाई
‘तुलसिदास’ आस पूरन भई, रघुकुल प्रकटे आई

Karuna Ke Sukh Sagar Data

श्रीराम प्राकट्य
करुणा के सागर, सुखदाता, यश गाये जिनका वेद संत
श्यामल सुन्दर राजीव नयन, शोभा-सागर कीरति अनन्त
माँ कौसल्या ने जन्म दिया, आयुध है चार भुजाओं में
भूषण गल माला अद्वितीय, हर्षित सब ऋषि मुनि सुर मन में
अवतार लिया दशरथ सुत हो, शिशु रूप धरा तब राघव ने
प्रिय लीला करने लगे तभी, माता को सुख प्रदान करने
मैं बारम्बार प्रणाम करूँ, शिशु राघव के श्री चरणों में
जिनका है रूप अनूप वही, छवि बस जाये मेरे उर में

Jay Jayti Jay Raghuvansh Bhushan

श्री राम वन्दना
जय जयति जय रघुवंशभूषण राम राजिवलोचनम्
त्रैताप खंडन जगत्-मंडन ध्यानगम्य अगोचरम्
अद्वैत अविनाशी अनिन्दित, मोक्षप्रद अरि गंजनम्
तव शरण भवनिधि-पारदायक, अन्य जगत् विडम्बनम्
हे दीन-दारिद के विदारक, दयासिन्धु कृपाकरम
हे भक्तजन के राम जीवन-मूल मंगल मंगलम्

Jay Ram Rama Ramnam Samanam

श्री राम वन्दना
जय राम रमा- रमनं समनं , भव-ताप भयाकुल पाहिजनं
अवधेस, सुरेस, रमेस विभो, सरनागत माँगत पाहि प्रभो
दस-सीस-बिनासन बीस भुजा, कृत दूरि महा-महि भूरि-रुजा
रजनी-चर-वृन्द-पतंग रहे, सर-पावक-तेज प्रचंड दहे
महि-मंडल-मंडन चारुतरं, धृत-सायक-चाप-निषंग-बरं
मद-मोह-महा ममता-रजनी, तमपुंज दिवाकर-तेज-अनी
मनजात किरात निपात किए, मृग, लोभ कुभोग सरेनहिए
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे, विषया वन पाँवर भूलि परे
बहु रोग वियोगन्हि लोग हए, भव दंघ्रि निरादर के फल ए
भव-सिन्धु अगाध परे नर ते, पद-पंकज-प्रेम न जे करते
अतिदिन मलीन दुखी नितहीं, जिनके पद पंकज प्रति नहीं
अवलंब भवन्त कथा जिन्हकें, प्रिय सन्त अनन्त सदा तिन्हकें
नहि राग न लोभ न मान मदा, तिन्हके सम वैभव वा विपदा
एहि ते तव सेवक होत मुदा, मुनि त्यागत जोग भरोस सदा
करि प्रेम निरन्तर नेम लिए, पद पंकज सेवत शुद्ध हिए
सम मानि निरादर आदर ही, सब सन्त सुखी विचरन्त मही
मुनि मानस पंकज भृंग भजे, रघुवीर महा रनधीर अजे
तब नाम जपामि ननामि हरी, भव रोग महागद मान अरी
गुनसील कृपा परमायतनं, प्रनमामि निरंतर श्री रमनं
रघुनन्द निकन्दय द्वन्द्वघनं, महिपाल विलोकय दीन जनं

Jagiya Raghunath Kunwar Panchi Van Bole

प्रभाती
जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले
चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई
त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले
प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो
भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले
ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान
जागन की बेर भई, नयन पलक खोले

Jhulat Ram Palne Sohe

झूला
झूलत राम पालने सोहैं, भूरि-भाग जननीजन जोहैं
तन मृदु मंजुल मे चकताई, झलकति बाल विभूषन झाँई
अधर – पानि – पद लोहित लोने, सर – सिंगार – भव सारस सोने
किलकत निरखि बिलोल खेलौना, मनहुँ विनोद लरत छबि छौना
रंजित – अंजन कंज – विलोचन, भ्रातज भाल तिलक गोरोचन
लस मसिबिंदु बदन – बिधुनीको, चितवत चित चकोर ‘तुलसी’ को

Thumak Chalat Ram Chandra

शिशु राम
ठुमक चलत रामचन्द्र, बाजत पैजनियाँ
किलक किलक उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय
धाय मातु गोद लेत, दशरथ की रनियाँ
अंचल-रज अंग जाकि, विविध भाँति सों दुलारि
तन-मन-धन वारि-वारि, कहत मृदु वचनियाँ
‘तुलसीदास’ अति अनन्द देखि के मुखारविन्द
रघुवर की छबि समान, रघुवर की बनियाँ

Pawan Prem Ram Charan

रामनाम महिमा
पावन प्रेम राम-चरन-कमल जनम लाहु परम
राम-नाम लेत होत, सुलभ सकल धरम
जोग, मख, विवेक, बिरति, वेद-विदित करम
करिबे कहुँ कटु कठोर, सुनत मधुर नरम
‘तुलसी’ सुनि, जानि बूझि, भूलहि जनि भरम
तेहि प्रभु को होहि, जाहि सबही की सरम

Bethi Sagun Manavati Mata

माँ की आतुरता
बैठी सगुन मनावति माता
कब ऐहैं मेरे बाल कुसल घर, कहहु, काग ! फुरि बाता
दूध-भात की दौनी दैहौं, सोने चोंच मढ़ैहौं
जब सिय-सहित विलोकि नयन भरि, राम-लषन उर लैहौं
अवधि समीप जानि जननी जिय अति आतुर अकुलानी
गनक बोलाइ, पाँय परि पूछति, प्रेम मगन मृदु बानी
तेहि अवसर कोउभरत निकट तें, समाचार लै आयो
प्रभु-आगमन सुनत ‘तुलसी’ मनु, मीन मरत जल पायो

Bhaye Prakat Krapala Din Dayala

श्री राम जन्म
भए प्रकट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी
हरषित महतारी मुनि मन हारी, अद्भुत रूप विचारी
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा, निज आयुध भुज चारी
भूषन वनमाला नयन विशाला, सोभा सिंधु खरारी
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी, केहि बिधि करौं अनंता
माया गुन ज्ञानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता
करुना-सुख-सागर सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता
सो मम हित लागी जन अनुरागी, भयउ प्रकट श्रीकंता
ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया, रोम रोम प्रति वेद कहै
मम उर सो वासी यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै
उपजा जब ज्ञाना प्रभु मुसकाना, चरित बहुत विधि कीन्ह चहै
कहि कथा सुनाई मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै
माता पुनि बोली सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा
कीजै सिसु लीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा
सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना, होई बालक सुर भूपा
यह चरित जे गावहिं हरि पद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा
छंद – विप्र, धेनु, सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार