राम स्मरण
कलि नाम कामतरु राम को
दलनिहार दारिद दुकाल दुख, दोष घोर धन धाम को
नाम लेत दाहिनों होत मन वाम विधाता वाम को
कहत मुनीस महेस महातम, उलटे सूधे नाम को
भलो लोक – परलोक तासु जाके बल ललित – ललाम को
‘तुलसी’ जग जानियत नामते, सोच न कूच मुकाम को
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Mero Man Ram Hi Ram Rate Re
नाम की महिमा
मेरो मन रामहि राम रटै रे
राम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कटे रे
जनम जनम के लेख पुराने, नामहि लेत फटे रे
कनक कटोरे अमृत भरियो, पीवत कौन नटे रे
‘मीराँ’ कहे प्रभु हरि अविनासी, तन-मन ताहि पटे रे
Ram Sumir Ram Sumir
माया
राम सुमिर, राम सुमिर, यही तेरो काज रे
माया को संग त्याग, प्रभुजी की शरण लाग
मिथ्या संसार सुख, झूठो सब साज रे
सपने में धन कमाय, ता पर तूँ करत मान
बालू की भीत जैसे, दुनिया को साज रे
‘नानक’ जन कहत बात, बिनसत है तेरो गात
छिन-छिन पर गयो काल, तैसे जात आज रे
Janani Main Na Jiu Bin Ram
भरत की व्यथा
जननी मैं न जीऊँ बिन राम
राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम
प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम
‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम
Ram Nam Ras Pije Manua
श्याम का रंग
राम-नाम रस पीजै, मनुआ! राम-नाम रस पीजै
ताज कुसंग, सत्संग बैठ नित, हरि-चर्चा सुन लीजै
काम, क्रोध, मद लोभ, मोह कूँ बहा चित्त से दीजै
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ताहि के रंग में भीजै
Re Man Ram So Kar Preet
श्री राम भजो
रे मन राम सों कर प्रीत
श्रवण गोविंद गुण सुनो, अरु गा तू रसना गीत
साधु-संगत, हरि स्मरण से होय पतित पुनीत
काल-सर्प सिर पे मँडराये, मुख पसारे भीत
आजकल में तोहि ग्रसिहै, समझ राखौ चीत
कहे ‘नानक’ राम भजले, जात अवसर बीत
Jay Ram Rama Ramnam Samanam
श्री राम वन्दना
जय राम रमा- रमनं समनं , भव-ताप भयाकुल पाहिजनं
अवधेस, सुरेस, रमेस विभो, सरनागत माँगत पाहि प्रभो
दस-सीस-बिनासन बीस भुजा, कृत दूरि महा-महि भूरि-रुजा
रजनी-चर-वृन्द-पतंग रहे, सर-पावक-तेज प्रचंड दहे
महि-मंडल-मंडन चारुतरं, धृत-सायक-चाप-निषंग-बरं
मद-मोह-महा ममता-रजनी, तमपुंज दिवाकर-तेज-अनी
मनजात किरात निपात किए, मृग, लोभ कुभोग सरेनहिए
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे, विषया वन पाँवर भूलि परे
बहु रोग वियोगन्हि लोग हए, भव दंघ्रि निरादर के फल ए
भव-सिन्धु अगाध परे नर ते, पद-पंकज-प्रेम न जे करते
अतिदिन मलीन दुखी नितहीं, जिनके पद पंकज प्रति नहीं
अवलंब भवन्त कथा जिन्हकें, प्रिय सन्त अनन्त सदा तिन्हकें
नहि राग न लोभ न मान मदा, तिन्हके सम वैभव वा विपदा
एहि ते तव सेवक होत मुदा, मुनि त्यागत जोग भरोस सदा
करि प्रेम निरन्तर नेम लिए, पद पंकज सेवत शुद्ध हिए
सम मानि निरादर आदर ही, सब सन्त सुखी विचरन्त मही
मुनि मानस पंकज भृंग भजे, रघुवीर महा रनधीर अजे
तब नाम जपामि ननामि हरी, भव रोग महागद मान अरी
गुनसील कृपा परमायतनं, प्रनमामि निरंतर श्री रमनं
रघुनन्द निकन्दय द्वन्द्वघनं, महिपाल विलोकय दीन जनं
Ab Tum Kab Simaroge Ram
हरिनाम स्मरण
अब तुम कब सुमरो गे राम, जिवड़ा दो दिन का मेहमान
गरभापन में हाथ जुड़ाया, निकल हुआ बेइमान
बालापन तो खेल गुमाया, तरूनापन में काम
बूढ़ेपन में काँपन लागा, निकल गया अरमान
झूठी काया झूठी माया, आखिर मौत निदान
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, क्यों करता अभिमान
Shri Ram Ko Maa Kaikai Ne
राम वनगमन
श्रीराम को माँ कैकयी ने दिया जभी वनवास
उनके मुख पर कहीं निराशा का, न तभी आभास
मात कौसल्या और सुमित्रा विलपे, पिता अचेत
उर्मिला की भी विषम दशा थी, त्यागे लखन निकेत
जटा बनाई वल्कल पहने, निकल पड़े रघुनाथ
जनक-नन्दिनी, लक्ष्मण भाई, गये उन्हीं के साथ
आज अयोध्या के नर नारी, विह्वल और उदास
विदा कर रहे अश्रु नयन में, राम गये वनवास
Jake Priy Na Ram Vedehi
राम-पद-प्रीति
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिये ताहि कोटि बैरीसम, जद्यपि परम सनेही
तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी
बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज – बनितनि, भये मुद – मंगलकारी
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं
अंजन कहाँ आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं
‘तुलसी’ सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो
जासों होइ सनेह राम – पद, एतो मतो हमारो