निवेदन (बंगला)
अन्तर मम विकसित करो अन्तरतर हे
निर्मल करो, उज्ज्वल करो, सुन्दर करो हे!
जाग्रत करो, उद्यत करो, निर्भय करो हे!
मंगल करो, निरलस, निःसंशय करो हे!
युक्त करो हे सवार संगे, मुक्त करो हे बंध!
संचार करो सकल कर्मे, शान्त तोमार छंद!
चरण-पद्मे
मम चित्त, निष्पंदित करो!
मम चित्त, निष्पंदित करो!
नंदित करो, नंदित करो, नंदित करो हे!

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