भक्त-वत्सलता
प्रभु तेरो वचन भरोसो साँचो
पोषन भरन विसंभर स्वामी, जो कलपै सो काँचौ
जब गजराज ग्राह सौं अटक्यौ, बली बहुत दुख पायौ
नाम लेट ताही छन हरिजू, गरुड़हि छाँड़ि छुड़ायौ
दुःशासन जब गही द्रौपदी, तब तिहिं वसन बढ़ायौ
‘सूरदास’ प्रभु भक्त बछल हैं, चरन सरन हौं आयौ
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Prabhu Ki Apaar Maya
शरणागति
प्रभु की अपार माया, जिसने जगत् रचाया
सुख दुःख का नजारा, कहीं धूप कहीं छाँया
अद्भुत ये सृष्टि जिसको, सब साज से सजाया
ऋषि मुनि या देव कोई, अब तक न पार पाया
सब ही भटक रहे है, दुस्तर है ऐसी माया
मुझको प्रभु बचालो, मैं हूँ शरण में आया
Prabhu Rakho Laj Hamari
शरणागति
प्रभु! राखो लाज हमारी
अमृत बना पिया विष मीरा, चरण-कमल बलिहारी
जिन भक्तों ने लिया सहारा, उनकी की रखवारी
खोया समय भोग में मैंने, तुमको दिया बिसारी
पापी कौन बड़ा मेरे से, तुम हो कलिमल हारी
प्रीति-पात्र मैं बनूँ तुम्हारा, संबल दो बनवारी
अविनय क्षमा करो नँदनंदन, आया शरण तुम्हारी
जो चाहे सो रूप धरो हरि, आओ कृष्ण मुरारी
Prabhu More Avgun Chit N Dharo
समदर्शी प्रभु
प्रभु मोरे अवगुण चित्त न धरो
समदर्शी है नाम तिहारो, चाहो तो पार करो
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परो
यह द्विविधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरो
इक नदिया इक नार कहावत, मैलो ही नीर भरो
जब मिलि के दोउ एक वरण भए, सुरसरि नाम परो
एक जीव, एक ब्रह्म कहावत, ‘सूर’ श्याम झगरो
अबकी बेर मोहि पार उतारो, नहिं प्रण जात टरो
Prabhu Ki Upaasana Nitya Kare
पूजन-अर्चन
प्रभु की उपासना नित्य करे
जो सत्य अलौकिक देव-भाव, जीवन में उनको यहीं भरे
मन बुद्धि को जो सहज ही में, श्री हरि की प्रीति प्रदान करे
भौतिक उपचारों के द्वारा, यह संभव होता निश्चित ही
पूजन होए श्रद्धापूर्वक, अनिष्ट मिटे सारे तब ही
पूजा का समापन आरती से, हरि भजन कीर्तन भी होए
तन्मयता से जब कीर्तन हो, प्रभु की अनुकम्पा को पाए
Prabhu Shakti Pradan Karo Aisi
शरणागति
प्रभु शक्ति प्रदान करो ऐसी, मन का विकार सब मिट जाये
चाहे निंदा हो या तिरस्कार, मुझको कुछ नहीं सता पाये
भोजन की चिन्ता नहीं मुझे, जब पक्षी जी भर खाते ही
मुझको मानव का जन्म दिया, तो खाने को भी देंगे ही
बतलाते हैं कुछ लोग मुझे, अन्यत्र कहीं सुख का मेला
देखा तो कुछ भी नहीं मिला, बस धोखे का था वह खेला
दुनियादारी का बोझ छोड़, प्रभु आया शरण तुम्हारी मैं
प्रभु दीनों के तुम रखवाले, विश्वास अडिग मेरा तुम में
Koi Kahiyo Re Prabhu Aawan Ki
विरह व्यथा
कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मन भावन की
आप न आवै, लिख नहिं भेजै, बान पड़ी ललचावन की
ए दोऊ नैन कह्यो नहिं माने, नदियाँ बहे जैसे सावन की
कहा करूँ कछु नहिं बस मेरो, पाँख नहीं उड़ जावन की
‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भई तेरे दामन की
Prabhu Ki Kaisi Sundar Riti
करुणामय प्रभु
प्रभु की कैसी सुन्दर रीति
विरुद निभाने के कारण ही पापीजन से प्रीति
गई मारने बालकृष्ण को, स्तन पे जहर लगाया
उसी पूतना को शुभगति दी, श्लाघनीय फल पाया
सुने दुर्वचन शिशुपाल के, द्वेषयुक्त जो मन था
लीन किया उसको अपने में, अनुग्रह तभी किया था
हरि चरणों में मूर्ख व्याध ने, भूल से बाण चलाया
करुणा-सागर है प्रभु ऐसे, स्वधाम उसे भिजवाया
कितने ही दुख पड़े झेलने, नाथ मुझे जीवन में
मानव देह आपने ही दी, भूलूँ कभी न मन में
Prabhu Ji Tumko Arpit Yah Jiwan
मेरी भावना
प्रभुजी! तुमको अर्पित यह जीवन
जीवन बीते सत्कर्मों में, श्रद्धा हो प्रभु की पूजा में
करो हृदय में ध्यान सदा, लगूँ नहीं कभी दुष्कर्मों में
इच्छा न जगे कोई मन में, प्रभु प्रेम-भाव से तृप्त रहूँ
सुख दुख आये जो जीवन में, प्रभु का प्रसाद में जान गहूँ
जो मात-पिता वे जीवन-धन, उनकी सेवा तन मन से हो
हर लो माया सद मोह सकल, प्रभु भक्ति-भाव मय जीवन हो
Prabhu Ji The To Chala Gaya Mhara Se Prit Lagay
पविरह व्यथा
प्रभुजी थें तो चला गया, म्हारा से प्रीत लगाय
छोड़ गया बिस्वास हिय में, प्रेम की बाती जलाय
विरह जलधि में छोड़ गया थें, नेह की नाव चलाय
‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन रह्यो न जाय