शरणागति
जो हम भले-बुरे तो तेरे
तुमहिं हमारी लाज बड़ाई, विनती सुनु प्रभु मेरे
सब तजि तव सरनागत आयो, निज कर चरन गहे रे
तव प्रताप बल बदत न काहू, निडर भये घर चेरे
और देव सब रंक भिखारी, त्यागे बहुत अनेरे
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरि कृपा ते, पाये सुख जु घनेरे

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