यज्ञ
जीवन को यज्ञ बनायें हम
निष्काम भाव से ईश्वर को, जब कर्म समर्पित हो जाते
तो अहं वासना जल जाते, मुक्ति का दान वही देते
हम हवन कुण्ड में समिधा से अग्नि को प्रज्वलित करते
आहुति दे घृत वस्तु की, वेदों में यज्ञ इसे कहते
जब प्राण बचाने परेवा का, राजा शिवि जो अपने तन का
सब मांस भेंट ही कर देते, यह भूत यज्ञ अद्भुत उनका
कई दिन से भूखे रंतिदेव, परिवार सहित जब अतिथि को
सारा भोजन अर्पित करते, भूखा रखकर वे अपने को
दधीचि महर्षि ने निज तन की, दे दी थी अस्थियाँ देवों को
सेवा पथ का यह श्रेष्ठ रूप, गीता में यज्ञ कहे इसको
परहित में जो शुभ कर्म करे अकर्म वही कहलाते हैं
परमार्थ का जो भी कर्म करें, यज्ञ स्वरूप हो जाते हैं

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