विरह व्यथा
अँखियाँ कृष्ण मिलन की प्यासी
आप तो जाय द्वारका छाये, लोग करत मेरी हाँसी
आम की दार कोयलिया बोलै, बोलत सबद उदासी
मेरे तो मन ऐसी आवै, करवत लेहौं कासी
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण कमल की दासी
Category: Meera
Jab Se Mohi Nand Nandan Drashti Padyo Mai
मोहन की मोहिनी
जब से मोहि नँद नंदन, दृष्टि पड्यो माई
कहा कहूँ या अनुपम छवि, वरणी नहीं जाई
मोरन की चन्द्रकला शीश मुकुट सोहे
केसर को तिलक भाल तीन लोक मोहे
कुण्डल की झलक तो, कपोलन पर छाई
मानो मीन सरवर तजि, मकर मिलन आई
कुटिल भृकुटि तिलक भाल, चितवन में टौना
खंजन अरु मधुप मीन, भूले मृग छोना
छुद्र घंटि किंकिनी की, मधुर ध्वनि सुहाई
गिरधर के अंग अंग, ‘मीराँ’ बलि जाई
Dekhat Shyam Hase
सुदामा से भेंट
देखत श्याम हँसे, सुदामा कूँ देखत श्याम हँसे
फाटी तो फुलड़ियाँ पाँव उभाणे, चलताँ चरण घसे
बालपणे का मीत सुदामा, अब क्यूँ दूर बसे
कहा भावज ने भेंट पठाई, ताँदुल तीन पसे
कित गई प्रभु मेरी टूटी टपरिया, माणिक महल लसे
कित गई प्रभु मेरी गउअन बछियाँ, द्वार पे सब ही हँसे
‘मीराँ’ के प्रभु हरि अविनासी, सरणे तोरे बसे
Bansiwala Aajo Mhare Des
विरह व्यथा
बंसीवाला आजो म्हारे देस, थाँरी साँवरी सूरति वालो भेष
आऊगा कह गया साँवरा, कर गया कौल अनेक
गणता गणता घिस गई म्हारी, आँगुलिया की रेख
तेरे कारण साँवराजी, धर लियो जोगण भेष
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, आओ मिटे कलेस
Muraliya Baji Jamna Teer
मुरली की मोहिनी
मुरलिया बाजी जमना तीर
मुरली म्हारो मन हर लीन्हों, चित्त धरे नहीं धीर
स्याम कन्हैया स्याम कमरिया, स्याम ही जमुना नीर
मुरली धुन सुण सुध बुध बिसरी, शीतल होत सरीर
‘मीराँ’ के प्रभु गुरुधर नागर, बेग हरो म्हारी पीर
Rana Ji Ab Na Rahungi Tori Hatki
वैराग्य
राणाजी! अब न रहूँगी तोरी हटकी
साधु-संग मोहि प्यारा लागै, लाज गई घूँघट की
पीहर मेड़ता छोड्यो अपनो, सुरत निरत दोउ चटकी
सतगुरु मुकर दिखाया घट का, नाचुँगी दे दे चुटकी
महल किला कुछ मोहि न चहिये, सारी रेसम-पट की
भई दिवानी ‘मीराँ’ डोलै, केस-लटा सब छिटकी
Hari Tum Haro Jan Ki Pir
पीड़ा हरलो
हरि तुम हरो जन की भीर
द्रौपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर
भक्त कारन रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर
हरिणकस्यप मारि लीन्हौं, धर्यो नाहिं न धीर
बूड़तो गजराज राख्यौ, कियो बाहर नीर
दासी ‘मीराँ’ लाल गिरिधर, हरो म्हारी पीर
Ab Jago Mohan Pyare
प्रभाती
अब जागो मोहन प्यारे
मात जसोदा दूध भात लिये, बैठी प्रात पुकारे
उठो मेरे मोहन आ मेरे श्याम, माखन मिसरी खारे
वन विचरन को गौएँ ठाड़ीं, ग्वाल बाल मिल सारे
तुम रे बिन एक पग नहिं चाले, राह कटत सब हारे
ना तुम सोये ना मैं जगाऊँ, लोग भरम भये प्यारे
दासी ‘मीराँ’ झुक झुक देखत, श्याम सूरति मतवारे
Jaao Hari Nirmohiya Re
स्वार्थ की प्रीति
जाओ हरि निरमोहिया रे, जाणी थाँरी प्रीत
लगन लगी जब और प्रीत थी, अब कुछ उलटी रीत
अमृत पाय जहर क्यूँ दीजे, कौण गाँव की रीत
‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरधर नागर, आप गरज के मीत
Nand Nandan Aage Nachungi
गाढ़ी प्रीति
नँद-नंदन आगे नाचूँगी
नाच नाच पिय तुमहिं रिझाऊँ, प्रेमीजन को जाँचूँगी
प्रेम प्रीत का बाँध घूँघरा, मोहन के ढिंग छाजूगीं
लोक-लाज कुल की मरजादा, या मैं एक न राखूँगी
पिय के पलँगाँ जा पौढूँगी, ‘मीराँ’ हरि रँग राँचूँगी