Aaj Vrashbhanu Geh Anand

श्री राधा जन्मोत्सव आज वृषभानु गेह आनन्द वदन प्रभा सी लागत मानो, प्रगट्यो पूरन-चंद बजे बाजने नाचे गाये, कोइ सुनावत टेर सुनि सब नारि बधावन आई, किये बिना कछु देर नंदराय अरु जसुमति रानी, न्योता पा चलि आये सुनतहि सबन भरे आनंद में, हुलसि भेंट को लाये अपने अपने मन को भाये, करत सकल ब्रज […]

Kanh Kahat Dadhi Dan N Deho

जकाती श्याम कान्ह कहत दधि दान न दैहों लैहों छीनि दूध दधि माखन, देखत ही तुम रैहों सब दिन को भरि लेहुँ आज ही, तब छाँड़ौं मैं तुमको तुम उकसावति मात पिता को, नहीं जानो तुम हमको (सखी) हम जानत हैं तुमको मोहन, लै लै गोद खिलाए ‘सूर’ स्याम अब भये जकाती, वे दिन सब […]

Jadyapi Man Samujhawat Log

स्मृति जद्यपि मन समुझावत लोग सूल होत नवनीत देख मेरे, मोहन के मुख जोग प्रातः काल उठि माखन-रोटी, को बिन माँगे दैहै को है मेरे कुँवर कान्ह कौं, छिन-छिन अंकन लैहै कहियौ पथिक जाइ घर आवहु, राम कृष्ण दौउ भैया ‘सूर’ श्याम किन होइ दुखारी, जिनके मो सी मैया

Jo Sukh Braj Me Ek Ghari

ब्रज का सुख जो सुख ब्रज में एक घरी सो सुख तीनि लोक में नाहीं, धनि यह घोष पुरी अष्ट सिद्धि नव निधि कर जोरे, द्वारैं रहति खरी सिव-सनकादि-सुकादि-अगोचर, ते अवतरे हरी धन्य धन्य बड़ भागिनि जसुमति, निगमनि सही परी ऐसे ‘सूरदास’ के प्रभु को, लीन्हौ अंक भरी

Dou Sut Gokul Nayak Mere

वियोग दोउ सुत गोकुल नायक मेरे काहे नंद छाँड़ि तुम आये, प्रान जीवन सबके रे तिनके जात बहुत दुख पायो, शोक भयो ब्रज में रे गोसुत गाय फिरत चहूँ दिसि में, करे चरित नहिं थोरे प्रीति न करी राम दसरथ की, प्रान तजे बिन हेरे ‘सूर’ नन्द सों कहति जसोदा, प्रबल पाप सब मेरे

Prabhuji Main Picho Kiyo Tumharo

चरणाश्रय प्रभुजी मैं पीछौ कियौ तुम्हारौ तुम तो दीनदयाल कहावत, सकल आपदा टारौ महा कुबुद्धि, कुटिल, अपराधी, औगुन भर लिये भारौ ‘सूर’ क्रूर की यही बीनती, ले चरननि में डारौ

Mai Moko Chand Lagyo Dukh Den

विरह व्यथा माई, मोकौं चाँद लग्यौ दुख दैन कहँ वे स्याम, कहाँ वे बतियाँ, कहँ वह सुख की रैन तारे गिनत गिनत मैं हारी, टपक न लागे नैन ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हारे दरस बिनु, विरहिनि कौं नहिं चैन

Maiya Mori Kamar Koun Lai

बाल क्रीड़ा मैया ! मोरी कामर कौन लई गाय चरावन जात वृन्दावन, खरिक में भाज गई एक कहे तोरि कारी कमरिया, जमुना में जात बही एक कहे तोरी कामर देखी, सुरभी खाय गई एक कहे नाचौ हम आगे, कामर देहु नई ‘सूरदास’ प्रभु जसुमति आगे, अँसुवन धार बही

Radha Te Hari Ke Rang Ranchi

अभिन्नता राधा! मैं हरि के रंग राँची तो तैं चतुर और नहिं कोऊ, बात कहौं मैं साँची तैं उन कौ मन नाहिं चुरायौ, ऐसी है तू काँची हरि तेरौ मन अबै चुरायौ, प्रथम तुही है नाची तुम औ’ स्याम एक हो दोऊ, बात याही तो साँची ‘सूर’ श्याम तेरे बस राधा! कहति लीक मैं खाँची

Sakhi Ri Sundarta Ko Rang

दिव्य सौन्दर्य सखी री सुन्दरता को रंग छिन-छिन माँहि परत छबि औरे, कमल नयन के अंग स्याम सुभग के ऊपर वारौं, आली, कोटि अनंग ‘सूरदास’ कछु कहत न आवै, गिरा भई अति पंग