Jagiya Raghunath Kunwar Panchi Van Bole

प्रभाती जागिये रघुनाथ कुँवर, पँछी वन बोले चन्द्र किरन शीतल भई, चकई पिय मिलन गई त्रिविध मंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले प्रात भानु प्रगट भयो, रजनी को तिमिर गयो भृंग करत गुंजगान कमलन दल खोले ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान जागन की बेर भई, नयन पलक खोले

Shabri Sagun Manawat Hai

शबरी की प्रीति शबरी सगुन मनावत है, मेरे घर आवेंगे राम बीज बीन फल लाई शबरी, दोना न्यारे न्यारे आरति सजा प्रार्थना कीन्ही, छिन मंदिर छिन द्वारे ऋषि के वचन सुनत मनमाहीं, हर्ष न ह्रदय समाई घर को काम सकल तज दीन्हों, गुन रघुपति के गाई अनुज सहित प्रभु दरसन दीन्हों, परी चरन लपटाई ‘तुलसीदास’ […]

Jay Jayati Jay Raghuvansh Bhushan

श्रीराम स्तुति जय जयति जय रघुवंश भूषण, राम राजिव लोचनम् त्रय ताप खण्डन जगत् मण्डन ध्यान गम्य अगोचरम् अद्वैत अविनाशी अनिन्दित, मोद प्रद अरि गंजनम् भव वारिधि के आप तारक, अन्य जगत् विडम्बनम् हे दीन दारिद के विदारक! दयासिन्धु कृपा करम् हे आश्रितों के आप पालक! दु:ख शोक विनाशकम् 

Raghu Nandan Ki Aarti Kije

राम आरती रघुनन्दन की आरती कीजै, दिव्य स्वरूप बसा मन लीजै पीताम्बर अद्वितीय कलेवर, संग जानकी माता सोहे धनुष बाण धारे जगदीश्वर, भरत, लखन, रिपुसूदन मोहे वैदेही लक्ष्मण है सँग में, राघवेन्द्र वनवास पधारे ॠषि, मुनि, शबरी दर्शन पाये, खरदूषण राक्षस संहारे साधुवेष धर रावण पहुँचा, वैदेही को तभी चुराया रावणादि को मार युद्ध में, […]

Man Madhav Ko Neku Niharhi

हरि पद प्रीति मन माधव को नेकु निहारहि सुनु सठ, सदा रंक के धन ज्यों, छिन छिन प्रभुहिं सँभारहि सोभा-सील ज्ञान-गुन-मंदिर, सुन्दर परम उदारहि रंजन संत, अखिल अघ गंजन, भंजन विषय विकारहि जो बिनु जोग जग्य व्रत, संयम, गयो चहै भव पारहि तो जनि ‘तुलसिदास’ निसि वासर, हरिपद कमल बिसारहि

Kari Gopal Ki Hoi

प्रारु करी गोपाल की होई जो अपनौं पुरुषारथ मानत, अति झूठौ है सोई साधन, मंत्र, जंत्र, उद्यम, बल, ये सब डारौ धोई जो कछु लिखि राखी नँदनंदन, मेटि सकै नहिं कोई दुख-सुख लाभ-अलाभ समुझि तुम, कतहिं मरत हौ रोई ‘सूरदास’ स्वामी करुनामय, स्याम चरन मन पोई

Gwalin Kar Te Kor Chudawat

बालकृष्ण लीला ग्वालिन कर ते कौर छुड़ावत झूठो लेत सबनि के मुख कौ, अपने मुख लै नावत षट-रस के पकवान धरे बहु, तामें रूचि नहिं पावत हा हा करि करि माँग लेत हैं, कहत मोहि अति भावत यह महिमा वे ही जन जानैं, जाते आप बँधावत ‘सूर’ श्याम सपने नहिं दरसत, मुनिजन ध्यान लगावत

Jewat Kanh Nand Ik Thore

भोजन माधुरी जेंवत कान्ह नन्द इक ठौरे कछुक खात लपटात दोउ कर, बाल केलि अति भोरे बरा कौर मेलत मुख भीतर, मिरिच दसन टकटौरे तीछन लगी नैन भरि आए, रोवत बाहर दौरे फूँकति बदन रोहिनी ठाड़ी, लिए लगाइ अँकोरे ‘सूर’ स्याम को मधुर कौर दे, कीन्हे तात निहोरे

Dhanya Nand Dhani Jasumati Rani

धन्य नन्द-यशोदा धन्य नन्द, धनि जसुमति रानी धन्य ग्वाल गोपी जु खिलाए, गोदहि सारंगपानी धन्य व्रजभूमि धन्य वृन्दावन, जहँ अविनासी आए धनि धनि ‘सूर’ आह हमहूँ जो, तुम सब देख न पाए

Bichure Syam Bahut Dukh Payo

बिछोह बिछुरे स्याम बहुत दुख पायौ दिन-दिन पीर होति अति गाढ़ी, पल-पल बरष बिहायौ व्याकुल भई सकल ब्रज-वनिता, नैक संदेस न पायो ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे मिलन कौ, नैनन अति झर लायौ