पतित-पावन
मैं हरि पतित-पावन सुने
मैं पतित तुम पतित पावन दोइ बानक बने
व्याध, गनिका, गज, अजामिल, साखि निगमनि भने
और अधम अनेक तारे, जात कापै गने
जानि नाम अजानि लीन्हें, नरक सुरपुर मने
दास तुलसी सरन आयो, राखिये आपने
Category: Vishnu
Jaise Tum Gaj Ko Paw Chudayo
भक्त के भगवान
जैसे तुम गज को पाँव छुड़ायौ
जब जब भीर परी भक्तन पै, तब तब आइ बचायौ
भक्ति हेतु प्रहलाद उबार्यो, द्रौपदी को चीर बढ़ायौ
‘सूरदास’ द्विज दीन सुदामा, तिहिं दारिद्र नसायौ
Dinan Dukh Haran Dev Santan Hitkari
भक्त के भगवान
दीनन दुख हरन देव संतन हितकारी
ध्रुव को हरि राज देत, प्रह्लाद को उबार लेत
भगत हेतु बाँध्यो सेतु, लंकपुरी जारी
तंदुल से रीझ जात, साग पात आप खात
शबरी के खाये फल, खाटे मीठे खारी
गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दुःशासन चीर खस्यो
सभा बीच कृष्ण कृष्ण, द्रौपदी पुकारी
इतने हरि आय गये, वसनन आरूढ़ भये
‘सूरदास’ द्वारे ठाढ़ो, आँधरो भिखारी
Dhwast Kiya Haygriv Detya
दशावतार
ध्वस्त किया हयग्रीव दैत्य और वेदों का भी उद्धार
मत्सत्य रूप धार्यो नारायण, जय जगदीश हरे
पृथ्वी को जल पर स्थिर की, हिरण्याक्ष को मारा
शूकर रूप धर्यो नारायण, जय जगदीश हरे
हिरण्यकाशीपु का नाश हुआ, भक्त प्रहलाद की रक्षा की
नरसिंह रूप धर्यो नारायण, जय जगदीश हरे
अमृत से वंचित हुए असुर देवों को पान कराया
मोहिनी रूप धर्यो नारायण, जय जगदीश हरे
तीन लोक को लियो नाप, बलि-कुल को कियो पवित्र
वामन रूप धर्यो नारायण, जय जगदीश हरे
क्षत्रिय कुल का नाश किया, सभी का जीवन सुखी हुआ
भृगुपति रूप धर्यो नारायण, जय जगदीश हरे
समर शमित दशकंठ, साधु-संतों का दु:ख हरा
राम रूप धार्यो नारायण, जय जगदीश हरे
खींचा यमुनाजी को हल से अरू कृतकृत्य किया
हलधर रूप धर्यो नारायण, जय जगदीश हरे
यज्ञों में जीवों की हिंसा, को नहीं मान्य किया
बुद्ध रूप धार्यो नारायण, जय जगदीश हरे
म्लेच्छों का संहार करें, सुख शांति प्रतिष्ठा हो
कल्कि रूप धरें नारायण, जय जगदीश हरे
श्री कृष्ण नारायण विष्णु एक अभिन्न स्वरूप
सुमिरन करे पार हो भव से, जय जगदीश हरे
Jo Param Shant Shri Lakshmikant
श्री नारायण स्तुति
जो परम शांत श्री लक्ष्मी-कांत, जो शेष-नाग पर शयन करें
वे पद्मनाभ देवाधिदेव, वे जन्म मरण का कष्ट हरें
है नील मेघ सम श्याम वर्ण, पीताम्बर जिनके कटि राजे
हे अंग सभी जिनके सुन्दर, शोभा पे कोटि मदन लाजे
ब्रह्मादि देव अरू योगी जन, जिनका हृदय में धरे ध्यान
वे कमल नयन सच्चिदानन्द, सब वेद-उपनिषद करें गान
वे शंख चक्र अरु, गदा पद्म, धारण करते कर कमलों में
मैं सादर उन्हें प्रणाम करूँ, जो नारायण जड़ चेतन में
Shri Hari Vishnu Aashray Sabke
श्री विष्णु सहस्त्रनाम महिमा
श्री हरि विष्णु आश्रय सबके, गुणगान करें हम श्रद्धा से
यह धर्म बड़ा है जीवन में, जो मुक्त करे जग बंधन से
भगवान विष्णु के नाम सहस्त्र, अर्चन हो, दे शुभ संस्कार
सब दुःखों से हो छुटकारा, सुख शान्ति मिले, छूटें विकार
अविनाशी पिता प्राणियों के, कर्ता धर्ता हर्ता जग के
लोक प्रधान श्री विष्णु ही, कई नाम कथाओं में उनके
जो सहस्त्र नाम का पाठ करे, श्रद्धा पूर्वक पाये न कष्ट
हो विजय सुनिश्चित क्षत्रिय की, धन पाय वैश्य जो भी अभीष्ट
वेदोक्त ज्ञान हो ब्राह्मण को, और शुद्र सहज ही सुख पाते
महाराज युधिष्ठिर धर्म-पुत्र को, भीष्म पितामह यों कहते