Chadi Man Hari Vimukhan Ko Sang

प्रबोधन छाड़ि मन, हरि-विमुखन को संग जिनके संग कुमति उपजत है, परत भजन में भंग कहा होत पय-पान कराए, विष नहिं तजत भुजंग कागहिं कहा कपूर चुगाए, स्वान न्हवाए गंग खर कौं कहा अरगजा-लेपन मरकट भूषन अंग गज कौं कहा सरित अन्हवाए, बधुरि धरै वह ढंग पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतो करत निषंग ‘सूरदास’ […]

Ter Suno Braj Raj Dulare

विनय टेर सुनो ब्रज राज दुलारे दीन-मलीन हीन सुभ गुण सों, आन पर्यो हूँ द्वार तिहारे काम, क्रोध अरु कपट, लोभ, मद, छूटत नहिं प्राण ते पियारे भ्रमत रह्यो इन संग विषय में, ‘सूरदास’ तव चरण बिसारे

Nainan Nirkhi Syam Swarup

विराट स्वरूप नैनन निरखि स्याम-स्वरूप रह्यौ घट-घट व्यापि सोई, जोति-रूप अनूप चरन सातों लोक जाके, सीस है आकास सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पावक, ‘सूर’ तासु प्रकास

Braj Ghar Ghar Pragati Yah Bat

माखन चोरी ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात दधि-माखन चोरी करि ले हरि, ग्वाल-सखा सँग खात ब्रज-बनिता यह सुनि मन हर्षित, सदन हमारें आवैं माखन खात अचानक पावैं, भुज हरि उरहिं छुवावै मन ही मन अभिलाष करति सब, ह्रदय धरति यह ध्यान ‘सूरदास’ प्रभु कौं हम दैहों, उत्तम माखन खान

Maiya Main Nahi Makhan Khayo

माखन चोरी मैया मैं नहिं माखन खायौ ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायौ देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचे धरि लटकायौ हौ जु कहत, नन्हें कर अपने, मैं कैसे करि पायौ मुख दधि पौंछि बुद्धि इक कीन्हीं, दोना पीठि दुरायौ डारि साट मुसकाई जसोदा, स्यामहिं कण्ठ लगायौ बाल विनोद मोद मन मोह्यो, […]

Radha Nain Neer Bhari Aai

मिलन उत्सुकता राधा नैन नीर भरि आई कबहौं स्याम मिले सुन्दर सखि, यदपि निकट है आई कहा करौं केहि भाँति जाऊँ अब, देखहि नहिं तिन पाई ‘सूर’ स्याम सुन्दर धन दरसे, तनु की ताप बुझाई

Sabse Unchi Prem Sagai

प्रेम का नाता सबसे ऊँची प्रेम सगाई दुर्योधन को मेवा त्याग्यो, साग विदुर घर खाई जूठे फल सबरी के खाये, बहु विधि स्वाद बताई प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं, आप बने हरि नाई राज सुयज्ञ युधिष्टिर कीन्हों, तामे झूठ उठाई प्रेम के बस पारथ रथ हांक्यो, भूलि गये ठकुराई ऐसी प्रीति बढ़ी वृन्दावन, गोपिन […]

Ham Bhaktan Ke Bhakta Hamare

भक्त के भगवान हम भक्तन के, भक्त हमारे सुन अर्जुन, परतिग्या मेरी, यह व्रत टरत न टारे भक्तै काज लाज हिय धरिकैं, पाय-पियादे धाऊँ जहँ-जहँ भीर परै भक्तन पै, तहँ-तहँ जाइ छुड़ाऊँ जो मम भक्त सों बैर करत है, सो निज बैरी मेरो देखि बिचारि, भक्तहित-कारन, हाँकत हौं रथ तेरो जीते जीत भक्त अपने की, […]

Karan Gati Tare Naahi Tare

कर्म-विपाक करम गति टारे नाहिं टरे सतवादी हरिचंद से राजा, नीच के नीर भरे पाँच पांडु अरु कुंती-द्रोपदी हाड़ हिमालै गरे जग्य कियो बलि लेण इंद्रासन, सो पाताल परे ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, विष से अमृत करे

Tum Bin Meri Kon Khabar Le Govardhan Giridhari

लाज तुम बिन मोरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरधारी मोर-मुकुट पीतांबर सोहै, कुण्डल की छबि न्यारी द्रुपद सुता की लाज बचाई, राखो लाज हमारी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कमल बलिहारी