बिछुड़ी चेरी
मैं कोउ बिछुड़ी चेरि तिहारी
तुम सौ बिछुर स्वामिनी! जग में डोली मारी मारी
अपनी का करतूत कहों, यह लीला सबहि तिहारी
जहाँ गई ज्यों त्यों सुख दुख में, सारी वयस गुजारी
सबसों हो निरास अब राधे! आई सरन तिहारी
अपुनी को अपनाय हरहु अब, हिय की हलचल भारी
देहु चरण चाकरी लाड़िली, निज निधि यही हमारी
निरखि निरखि तव रूप माधुरी, रहिहों सदा सुखारी

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