पूजन में प्रेम
मैं कुसुम कली हूँ पूजन की, है अहो भाग्य यह मेरा
फूलों की मैं माला बन कर, मैं प्रिय के गले लगूँगी
उनका मन आल्हादित करके, मैं धन्य-भाग्य होऊँगी
मन-मोहन को रिझा सकूँगी, पुष्पगंध के द्वारा
अपना जीवन सफल करूँगी, पा लूँगी सुख सारा
गद्गद् तब मैं हो जाऊँगी, अश्रुपात नयनों से
राधावर से होगा मिलाप, तब पूरे अन्तर-मन से 

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