भगवान दत्तात्रेय
श्री विष्णु दत्तात्रेय ही, सादर नमन उनको करुँ
रहते दिगम्बर वेष में, अज्ञान हरते सद्गुरु
दुख दूर करने प्राणियों का, तप किया मुनि अत्रि ने
बेटा बनूँगा आपका, बोला प्रकट हो विष्णु ने
आत्रेय माता अनसुया, जिनमें अहं निःशेष था
सर्वोच्च सती के रूप में, प्रख्यात उनका नाम था
सती धर्म की लेने परीक्षा, ब्रह्मा हरि हर आ गये
सामर्थ्य सती का था प्रबल, नवजात शिशु वे हो गये
अपना पिलाया दूध माँ ने, पूर्ववत् उनको किया
‘माँ! पुत्र होंगे हम तुम्हारे’, वरदान तीनों ने दिया
माँ अनसुया आत्रेय का, जय घोष श्रद्धा से करें
उपदेश व आदर्श उनका, हृदय में अपने धरें
श्री दत्त योगीराज थे, सिद्धों के परमाचार्य थे
निर्लोभ वे उपदेश दे, इसलिए गुरुदत्त थे
आह्लदकारी चन्द्रमा सा, वर्ण दत्तात्रेय का
काली जटा तन भस्म धारे, निर्देश देते ज्ञान का

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