जीवात्मा
तूँ अपने को पहचान रे
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, तूँ चेतन को जान रे
घट घट में चेतन का वासा, उसका तुझे न भान रे
परम् ब्रह्म का यह स्वरूप है, जो यथार्थ में ज्ञान रे
रक्त मांस से बनी देह यह, जल जाती श्मशान रे
वे विश्व वद्य वे जग-निवास, कर मन में उनका ध्यान रे 

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