प्रबोधन
करहुँ मन, नँदनंदन को ध्यान
येहि अवसर तोहिं फिर न मिलैगो, मेरो कह्यो अब मान
अन्तकाल की राह देख मत, तब न रहेगो भान
घूँघरवाली अलकैं मुख पर, कुण्डल झलकत कान
मोर-मुकुट अलसाने नैना, झूमत रूप निधान
दिव्य स्वरुप हृदय में धरले करहुँ नित्य प्रभु गान

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