भ्रम की दुनिया
प्रभुजी, मैं जगत् देख भरमाया
किया अनुग्रह आप ही ने तो तब तो मनुज योनी में आया
भूल गया उपकार किन्तु मैं, किया सदा मन भाया
घट-घट वासी आप ही स्वामी, तथ्य समझ में आया
तेरी मेरी करके फिर भी, यूँ ही समय बिताया
वैभव देख दूसरों का मन मेरा भी ललचाया
मोह-पाश में फँसा रहा मैं, दुर्गम प्रभु की माया
खूब सँवारी मैंने काया, सुन्दर महल बनाया
और लगाये बाग-बगीचे, फूला नहीं समाया
दुष्ट-बुद्धि ऐसा मैं भगवत्, हीरा-जनम गँवाया

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