भाव के भूखे
भाव के भूखे प्रभु हैं, भाव ही तो सार है
भाव से उनको भजे जो, उसका बेड़ा पार है
वस्त्र भूषण या कि धन हो, सबके दाता तो वही
अर्पण करें सर्वस्व उनको, भाव तो सच्चा यही
भाव से हम पत्र, जल या पुष्प उनको भेंट दे
स्वीकारते उसको प्रभु, भव-निधि से हमको तार दे
प्रेम के प्यासे प्रभु हैं, गोपियों ने जो दिया
भगवान् उनके हो गये, सोचें कि हमने क्या किया

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