हृदय की तपन
आओ आओ श्याम, हृदय की तपन बुझाओ
चरण कमल हिय धरो, शोक संताप नसाओ
यों कहि रोई फूटि-फूटि के, गोपी सस्वर
रहि न सके तब श्याम भये, प्रकटित तहँ सत्वर
मदन मनोहर वेष तैं, मनमथ के मनकूँ करत
प्रकटे प्रभु तिन मध्य में, शोक मोह हियको हरत
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Bin Kaju Aaj Maharaj Laj Gai Meri
द्रोपदी का विलाप
बिन काज आज महाराज लाज गई मेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी
दुःशासन वंश कठोर, महा दुखदाई
खैंचत वह मेरो चीर लाज नहिं आई
अब भयो धर्म को नास, पाप रह्यो छाई
यह देख सभा की ओर नारि बिलखाई
शकुनि दुर्योधन, कर्ण खड़े खल घेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी
तुम दीनन की सुध लेत देवकी-नन्दन
महिमा अनन्त भगवन्त भक्त-भय भंजन
तुम कियो सिया दुख दूर शम्भु-धनु खण्डन
अति आर्ति-हरण गोपाल मुनिन मन-रंजन
करुणानिधान भगवान करी क्यों देरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण में तेरी
बैठा जहाँ राज समाज, नीति सब खोई
नहिं कहत धर्म की बात सभा में कोई
पाँचो पति बैठे मौन कौन गति होई
ले नन्दनँदन को नाम द्रोपदी रोई
करि करि विलाप सन्ताप सभा में हेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी
तुम सुनी गजेन्द्र की टेर, विष्णु अनिवासी
ग्रह मारि छुड़ायो बन्दि काटि पग फाँसी
मै जपूँ तुम्हारो नाम द्वारिका वासी
अब काहे राज समाज करावत हाँसी
अब कृपा करो यदुनाथ जान चित चेरी
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण में तेरी
Aur Ansha Avtar Krishna Bhagwan Swayam Hai
परब्रह्म श्री कृष्ण
और अंश अवतार कृष्ण भगवान स्वयम् हैं
वे मानुस बनि गये, यशोदा नन्द-नँदन हैं
सकल भुवन के ईश एक, आश्रय वनवारी
मोर मुकुट सिर धारि अधर, मुरली अति प्यारी
रस सरबस श्रृंगार के, साक्षात् श्रृंगार हैं
जो विभु हैं, आनन्दघन, उन प्रभु की हम शरन हैं
Yashoda Kaiso Lala Jayo
यशोदा के लाल
यशोदा कैसो लाला जायो
कोई कहे कुसुम अलसी सम, अन्जन अपर बतायो
कोई दुर्वा-वन सम शोभा, उत्पल द्युति कहि गायो
कोई कहे जनम नहिं याको, छिपि मधुबन तें आयो
कोई कहे ब्रह्मा को बाबा, वेदहु भेद न पायो
कैसो कहे कहत सकुचावत, नहिं हम दरशन पायो
गोविन्द गोकुल कुँवर गोपपति, गोपीश्वर कहलायो
कहा कहूँ कछु कहत न आवै, चरण कमल सिर नायो
Ek Aur Vah Kshir Nir Main Sukh Se Sowen
श्री राधाकृष्ण
एक ओर वह क्षीर नीर में, सुख से सोवैं
करि के शैया शेष लक्ष्मीजी, जिन पद जोवैं
वे ही राधेश्याम युगल, विहरत कुंजनि में
लोकपाल बनि तऊ चरावत, धेनु वननि में
निज ऐश्वर्य भुलाय कें, करैं अटपटे काम है
तेज पुंज उन कृष्ण को, बारम्बार प्रणाम है
Radha Ras Ki Khani Sarasta Sukh Ki Beli
श्री राधा
राधा रस की खानि, सरसता सुख की बेली
नन्दनँदन मुखचन्द्र चकोरी, नित्य नवेली
नित नव नव रचि रास, रसिक हिय रस बरसावै
केलि कला महँ कुशल, अलौकिक सुख सरसावै
यह अवनी पावन बनी, राधा पद-रज परसि के
जिह राज सुरगन इन्द्र अज, शिव सिर धारें हरषि के
Kachu Pat Pahinati Rahi
बंसी का जादू
कछु पट पहिनति रही, कछुक आभूषण धारति
कछु दर्पन महँ देखि माँग, सिन्दूर सम्हारति
जो जो कारज करति रही, त्यागो सो तिनने
चलीं बेनु सुनि काज अधुरे छोड़े उनने
बरजी पति पितु बन्धु ने, रोकी बहुत पर नहीं रुकी
कही बहुत पर ते नहीं, लोक लाज सम्मुख झुकी
Van Te Aawat Shri Giridhari
वन से वापसी
वनतैं आवत श्रीगिरिधारी
सबहिं श्रवन दै सुनहु सहेली, बजी बाँसुरी प्यारी
धेनु खुरनि की धुरि उड़त नभ, कोलाहल अति भारी
गावत गीत ग्वाल सब मिलिकें, नाचत बीच बिहारी
मलिन मुखी हम निशि सम नारी, बिनु हरि सदा दुखारी
कृष्णचन्द्र ब्रजचन्द्र खिलें नभ, तब हम चन्द्र उजारी
मिटै ताप संताप तबहिं जब, दृष्टि परैं बनवारी
चलो चलें चित-चोर विलोकें, ठाढ़े कृष्ण मुरारी
Ka Mere Man Mah Base Vrindawan Var Dham
अभिलाषा
कब मेरे मन महँ बसै, वृन्दावन वर धाम
कब रसना निशि दिन रटै, सुखते श्यामा श्याम
कब इन नयननिते लखूँ, वृन्दावन की धूरि
जो रसिकनि की परम प्रिय, पावन जीवन मूरि
कब लोटूँ अति विकल ह्वै, ब्रजरज महँ हरषाय
करूँ कीच कब धूरि की, नयननि नीर बहाय
कब रसिकनि के पैर परि, रोऊँ ह्वैके दीन
कब प्रिय दर्शन बिनु बनूँ, विकल नीर बिनु मीन
कब अति कोमल चित रसिक, मोकूँ हिये लगाय
गहकि मिलैं सिर कर धरैं, मगन होहिं अपनाय
वृन्दावन महँ सखिनि संग, कब निरखूँ नँद नन्द
मोर मुकुट सिर बेनु कर, कारी कमरी कन्ध
कब मोकूँ यशुमति तनय, सखा समुझि लै संग
खेलैं वृन्दा-विपिन महँ, परसे मेरो अंग
कदँब तले ठाड़े उभय, दीये युगल गल बाँह
मोर मुकुट में चन्द्रिका, सटी कपोल उछाँह
राधा बाधा हरन द्वै, अच्छर हिय में धारी
भवसागर तरि जाइगो, सबही सोच बिसारि
Swamin Pashupate Prabho Das Ke Pas Chudao
शिवाशीव स्तुति
स्वामिन्! पशुपति! प्रभो! दास के पास छुड़ाओ
जगदम्बा! माँ! उमा वत्स कूँ हृदय लगाओ
भटक्यो जग महँ जनक! शरन चरनन महँ दीजे
माँ! अब गोद बिठाय चूमि मुख सुत कूँ लीजे
यद्यपि हौं अति अधमहूँ, तऊ पिता! अपनाइ लैं
मैं जो साधन रहित सुत, कूँ हिय तें चिपकाइ लैं