Ankhiyan Hari Darsan Ki Pyasi

वियोग
अँखिया हरि दरसन की प्यासी
देख्यो चाहत कमलनैन को, निसिदिन रहत उदासी
आयो ऊधौ फिरि गये आँगन, डारि गये गल फाँसी
केसरि तिलक मोतिन की माला, वृन्दावन को वासी
काहु के मनकी कोउ न जानत, लोगन के मन हाँसी
‘सूरदास’ प्रभु तुमरे दरस बिन, लेहौं करवत कासी

Karat Shrangar Maiya Man Bhavat

श्रृंगार
करत श्रृंगार मैया मन भावत
शीतल जल तातो करि राख्यो, ले लालन को बैठ न्हवावत
अंग अँगोछ चौकी बैठारत, प्रथमही ले तनिया पहरावत
देखो लाल और सब बालक, घर-घर ते कैसे बन आवत
पहर्यो लाल झँगा अति सुंदर, आँख आँज के तिलक बनावत
‘सूरदास’, प्रभु खेलत आँगन, लेत बलैंया मोद बढ़ावत

Khelan Ko Hari Duri Gayo Ri

यशोदा की चिन्ता
खेलन कौं हरि दूरि गयौ री
संग-संग धावत डोलत हैं, कह धौं बहुत अबेर भयौ री
पलक ओट भावत नहिं मोकौं, कहा कहौं तोहि बात
नंदहिं तात-तात कहि बोलत, मोहि कहत है मात
इतनो कहत स्याम-घन आये, ग्वाल सखा सब चीन्हे
दौरि जाइ उर लाइ ‘सूर’ प्रभु, हरषि जसोदा लीन्हे

Jagahu Jagahu Nand Kumar

प्रभाती
जागहु जागहु नंद-कुमार
रवि बहु चढ्यो रैन सब निघटी, उचटे सकल किवार
ग्वाल-बाल सब खड़े द्वार पै, उठ मेरे प्रानअधार
घर घर गोपी दही बिलोवै, कर कंकन झंकार
साँझ दुहां तुम कह्यो गाईकौं, तामें होति अबार
‘सूरदास’ प्रभु उठे तुरत ही, लीला अगम अपार

Tum Pe Kon Dehave Gaiya

गौ-दोहन
तुम पै कौन दुहावै गैया
लिये रहत कर कनक दोहनी, बैठत हो अध पैया
इत चितवत उत धार चलावत, एहि सखियो है मैया
‘सूरदास’ प्रभु झगरो सीख्यौ, गोपिन चित्त चुरैया

Nisi Din Barsat Nain Hamare

विरह व्यथा
निसि दिन बरसत नैन हमारे
सदा रहत पावस-ऋतु हम पर, जब तें श्याम सिधारे
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे
कचुंकि-पट सूखत नहीं कबहूँ, उर बिच बहत पनारे
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे
‘सूरदास’ अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे

Bal Krishna Kahe Maiya Maiya

माँ का स्नेह
बालकृष्ण कहे मैया मैया
नन्द महर सौं बाबा-बाबा, अरु हलधर सौं भैया
ऊँचे चढ़ि-चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया
दूर खेलन जनि जाहु ललारे, मारेगी कोउ गैया
गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर-घर बजत बधैया
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस को, चरणनि की बलि जैया

Mero Mai Hathi Ye Bal Govinda

हठी बाल कृष्ण
मेरौ माई हठी ये बाल-गोबिंदा
अपने कर गहि गगन बतावत, खेलन माँगे चंदा
बासन मैं जल धर्यो जसोदा, हरि कौं आनि दिखावे
रूदन करत ढूँढत नहिं पावत, चंद धरनि क्यों आवे
मधु मेवा पकवान मिठाई, माँगि लेहु मेरे छौना
चकई डोरी पाट के लटकन, लेहु मेरे लाल खिलौना
संत उबारन असुर सँहारन, दूरि करन दुख दंदा
‘सूरदास’ बलि गई जसोदा, उपज्यौ कंस निकंदा

Mo Sam Kon Kutil Khal Kami

शरणागति
मो सम कौन कुटिल खल कामी
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी
हरिजन छाँड़ि हरी-विमुखन की, निसिदिन करत गुलामी
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी
‘सूर’ पतित को ठौर कहाँ है, सुनिए श्रीपति स्वामी

Lal Teri Fir Fir Jat Sagai

माखन चोरी
लाल तेरी फिर फिर जात सगाई
चोरी की लत त्याग दे मोहन, लड़ लड़ जाय लुगाई
दूध दही घर में बहुतेरो, माखन और मलाई
बार बार समुझाय जसोदा, माने न कुँवर कन्हाई
नंदराय नन्दरानी परस्पर, मन में अति सुख पाई
सूर श्याम के रूप, शील गुण, कोउ से कहा न जाई