Shyam Tori Murli Nek Bajaun

ठिठोली स्याम, तोरी मुरली नेक बजाऊँ जोइ-जोइ तान भरो मुरली में, सोइ सोइ गाय सुनाऊँ हमरी बिंदिया तुमही लगाओ, मैं सिर मुकुट धराऊँ हमरे भूषण तुम सब पहिरौ, मैं तुम्हरे सब पाऊँ तुमरे सिर माखन की मटकी, मैं मिलि ग्वाल लुटाऊँ तुम दधि बेचन जाओ वृन्दावन, मैं मग रोकन आऊँ मानिनी होकर मान करो तुम, […]

He Hari Nam Ko Aadhar

नाम स्मरण है हरि नाम को आधार और या कलिकाल नाहिन, रह्यो विधि ब्यौहार नारदादि, सुकादि संकर, कियो यहै विचार सकल श्रुति दधि मथत काढ्यो, इतो ही घृतसार दसहुँ दिसि गुन करम रोक्यो, मीन को ज्यों जार ‘सूर’ हरि को सुजस गावत, जेहि मिटे भवभार

Chalan Vahi Des Pritam Chalan Vahi Des

प्रीतम के देश चालाँ वाही देस प्रीतम, चालाँ वाही देस कहो कसूमल साड़ी रँगावाँ, कहो तो भगवाँ भेस कहो तो मोतियाँ माँग भरावाँ, कहो बिखरावाँ केस ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, सुण लो बिरद नरेस

Daras Bina Dukhan Lage Nain

विरह व्यथा दरस बिन दूखँण लागै नैन जब से तुम बिछुड़े मेरे प्रभुजी, कबहुँ न पायो चैन सबद सुनत मेरी छतियाँ काँपें, कड़वे लागै बैन विरह कथा कासूँ कहुँ सजनी, बह गई करवत ऐन कल न परत, हरि को मग जोवत, भई छमासी रैन ‘मीरा’ के प्रभु कबरे मिलोगे, दुख मेटण सुख दैन

Prabhu Ji The To Chala Gaya Mhara Se Prit Lagay

पविरह व्यथा प्रभुजी थें तो चला गया, म्हारा से प्रीत लगाय छोड़ गया बिस्वास हिय में, प्रेम की बाती जलाय विरह जलधि में छोड़ गया थें, नेह की नाव चलाय ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन रह्यो न जाय

Meera Lago Rang Hari

हरि से प्रीति ‘मीराँ’ लागो रंग हरी, और न रँग की अटक परी चूड़ो म्हाँरे तिलक अरु माला, सील बरत सिणगारो और सिंगार म्हाँरे दाय न आवे, यो गुरू ज्ञान हमारो कोई निंदो कोई बिंदो म्हे तो, गुण गोबिंद का गास्याँ जिण मारग म्हाँरा साध पधारौ, उण मारग म्हे जास्याँ चोरी न करस्याँ, जिव न […]

Mhare Janam Maran Ra Sathi

म्हारा साथी म्हारे जनम-मरण रा साथी, थाँने नहिं बिसरूँ दिन राती थाँ देख्याँ बिन कल न पड़त है, जाणत मोरी छाती ऊँची चढ़-चढ़ पंथ निहारूँ, रोय-रोय अँखिया राती यो संसार सकल जग झूँठो, झूँठा कुल रा न्याती दोउ कर जोड्याँ अरज करूँ छू, सुणल्यो म्हारी बाती यो मन मेरो बड़ो हरामी, ज्यूँ मदमातो हाथी सत्गुरू […]

Suni Main Hari Aawan Ki

प्रतीक्षा सुनी मैं हरि आवन की अवाज महल चढ़ि चढ़ि देखूँ मोरी सजनी, कब आवे महाराज दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल मधुरे साज उमग्यो बदरा चहुँ दिस बरसे, दामिनि छोड़ी लाज धरती रूप नवा नवा धरिया, इंद्र मिलन के काज ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेग मिलो महाराज

Tan Ki Dhan Ki Kon Badhai

अन्त काल तन की धन की कौन बड़ाई, देखत नैनों में माटी मिलाई अपने खातिर महल बनाया, आपहि जाकर जंगल सोया हाड़ जले जैसे लकरि की मोली, बाल जले जैसे घास की पोली कहत ‘ कबीर’ सुनो मेरे गुनिया, आप मरे पिछे डूबी रे दुनिया

Ram Nam Ke Bina Jagat Main

राम आसरा राम नाम के बिना जगत में, कोई नहीं भाई महल बनाओ बाग लगाओ, वेष हो जैसे छैला इस पिजड़े से प्राण निकल गये, रह गया चाम अकेला तीन मस तक तिरिया रोवे, छठे मास तक भाई जनम जनम तो माता रोवे, कर गयो आस पराई पाँच पचास बराती आये, ले चल ले चल […]