Tab Nagari Man Harash Bhai
श्री राधा की प्रीति तब नागरि मन हरष भई नेह पुरातन जानि स्याम कौ, अति आनंदमई प्रकृति पुरुष, नारी मैं वे पति, काहे भूलि गई को माता, को पिता, बंधु को, यह तो भेंट नई जनम जनम जुग जुग यह लीला, प्यारी जानि लई ‘सूरदास’ प्रभु की यह महिमा, यातैं बिबस भई
Naina Bhaye Anath Hamare
विरह व्यथा नैना भये अनाथ हमारे मदनगुपाल यहाँ ते सजनी, सुनियत दूरि सिधारे वै हरि जल हम मीन बापुरी, कैसे जियहिं नियारे हम चातक चकोर श्यामल घन, बदन सुधा-निधि प्यारे मधुबन बसत आस दरसन की, नैन जोई मग हारे ‘सूरदास’ ऐसे मनमोहन, मृतक हुते पुनि मारे
Bharosa Dradh In Charanan Kero
शरणागति भरोसो दृढ़ इन चरणन केरो श्री वल्लभ नख-चन्द्र छटा बिनु, सब जग माँझ अँधेरो साधन और नहीं या कलि में, जासो होत निबेरो ‘सूर’ कहा कहैद्विविध आँधरो, बिना मोल को चेरो
Maiya Mori Kamar Koun Lai
बाल क्रीड़ा मैया ! मोरी कामर कौन लई गाय चरावन जात वृन्दावन, खरिक में भाज गई एक कहे तोरि कारी कमरिया, जमुना में जात बही एक कहे तोरी कामर देखी, सुरभी खाय गई एक कहे नाचौ हम आगे, कामर देहु नई ‘सूरदास’ प्रभु जसुमति आगे, अँसुवन धार बही
Radha Mohan Karat Biyaru
ब्यालू राधा मोहन करत बियारू एक ही थार सँवारे सुंदरि, वेष धर्यो मनहारी मधु मेवा पकवान मिठाई, षडरस अति रुचिकारी ‘सूरदास’ को जूठन दीनी, अति प्रसन्न ललितारी
Sabhi Taj Bhajiye Nand Kumar
श्री कृष्ण स्मरण सभी तज भजिये नंदकुमार और भजें ते काम सरे नहिं, मिटे न भव जंजार यह जिय जानि, इहीं छिन भजि, दिन बीते जात असार ‘सूरदास’ औसर मत चूकै, पाये न बारम्बार
Hamare Nirdhan Ke Dhan Ram
प्रबोधन हमारे निर्धन के धन राम चोर न लेत घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ैं काम जल नहिं बूड़त, अगिनि न दाहत, है ऐसो हरि नाम वैकुण्ठनाथ सकल सुख दाता, ‘सूरदास’ सुख-धाम
Kanha Thari Jowat Rah Gai Baat
विरह व्यथा कान्हा! थारी जोवत रह गई बाट जोवत-जोवत इक पग ठाढ़ी, कालिन्दी के घाट छल की प्रीति करी मनमोहन, या कपटी की बात ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ब्रज को कियो उचाट
Tumhare Kaaran Sab Sukh Chodya
विरह व्यथा तुम्हरे कारण सब सुख छोड्यो, अब मोहि क्यूँ तरसावो बिरह व्यथा लागी उर अंदर, सो तुम आय बुझावो अब छोड्याँ नहिं बनै प्रभूजी, हँस कर तुरत बुलाओ ‘मीराँ’ दासी जनम जनम की, अंग सूँ अंग लगाओ
Piya Bin Rahyo Na Jay
विरह व्यथा पिया बिन रह्यो न जाय तन-मन मेरो पिया पर वारूँ, बार-बार बलि जाय निस दिन जोऊँ बाट पिया की, कब रे मिलोगे आय ‘मीराँ’ को प्रभु आस तुम्हारी, लीज्यो कण्ठ लगाय