Jo Tu Krishna Nam Dhan Dharto

नाम महिमा
जो तूँ कृष्ण नाम धन धरतो
अब को जनम आगिलो तेरो, दोऊ जनम सुधरतो
जन को त्रास सबै मिटि जातो, भगत नाँउ तेरो परतो
‘सूरदास’ बैकुण्ठ लोक में, कोई न फेंट पकरतो

Krishna Priya Jamuna Maharani

श्री यमुना स्तवन
कृष्ण-प्रिया जमुना महारानी
श्यामा वर्ण अवस्था षोडश सुन्दर रूप न जाय बखानी
नयन प्रफुल्लित अम्बुज के से, नुपूर की झंकार सुहानी
नीली साड़ी शोभित करधनी मोतियन माल कण्ठ मनभानी
स्वर्ण रत्न निर्मित दो कुण्डल, दिव्य दीप्ति जिसकी नहीं सानी
आभूषण केयूर आदि की,असीमित शोभा सुखद सुहानी
देवी का सौन्दर्य मनोहर, धरे हृदय में ऋषि, मुनि ज्ञानी
सूर्य-नन्दिनी यमुना मैया, भक्ति कृष्ण की दो वरदानी

Tiharo Krishna Kahat Ka Jat

चेतावनी
तिहारौ कृष्ण कहत का जात
बिछुड़ैं मिलै कबहुँ नहिं कोई, ज्यों तरुवर के पात
पित्त वात कफ कण्ठ विरोधे, रसना टूटै बात
प्रान लिये जैम जात मूढ़-मति! देखत जननी तात
जम के फंद परै नहि जब लगि, क्यों न चरन लपटात
कहत ‘सूर’ विरथा यह देही, ऐतौ क्यों इतरात

Krishna Radhika Radha Krishna

युगल स्वरूप
कृष्ण राधिका, राधा कृष्ण, तत्व रूप से दोनों एक
राधे श्याम, श्याम राधिके, भिन्न तथापि अभिन्न विवेक
राधामय जीवन ही कृष्ण का, कृष्णचन्द्र ही जीवन रूप
ऐकमेकता दिव्य युगल की, सदा एकरस तत्व अनूप
दो के बिना न संभव होता, वितरण लीला का आस्वाद
इसीलिये तो तन-मन से वे, लीला करते-निर्विवाद
नित्य नया सुख देने को ही, बना परस्पर ऐसा भाव
एक दूसरे के मन की ही, करते रहते यही स्वभाव
राधा शरण ग्रहण करके ही, सुलभ हमें हो नित्यानंद
मिट जाये मन का भ्रम सारा, मिटे जगत् के सारे द्वंद

Bal Krishna Kahe Maiya Maiya

माँ का स्नेह
बालकृष्ण कहे मैया मैया
नन्द महर सौं बाबा-बाबा, अरु हलधर सौं भैया
ऊँचे चढ़ि-चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया
दूर खेलन जनि जाहु ललारे, मारेगी कोउ गैया
गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर-घर बजत बधैया
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस को, चरणनि की बलि जैया

Jane Kya Jadu Bhara Hua Shri Krishna Aapki Gita Main

गीताजी की महिमा
जाने क्या जादू भरा हुआ, श्रीकृष्ण आपकी गीता में
जब शोक मोह से घिर जाते, गीता संदेश स्मरण करते,
उद्धार हमारा ही इसमें, भगवान आपकी गीता में
निगमागम का सब सार भरा, संकट से यह उबार लेती
नित अमृत का हम पान करें, हे श्री कृष्ण आपकी गीता में
है कर्म, भक्ति रस ज्ञान भरा, श्रद्धापूर्वक हम ग्रहण करें
मानव के हित उपदेश सुलभ, गोविन्द आपकी गीता में

Re Man Krishna Nam Kah Lije

नाम स्मरण
रेमन, कृष्ण-नाम कह लीजै
गुरु के वचन अटल करि मानहु, साधु-समागम कीजै
पढ़ियै-सुनियै भगति-भागवत, और कथा कहि लीजै
कृष्ण-नाम बिनु जनम वृथा है, वृथा जनम कहाँ जीजै
कृष्ण-नाम-रस बह्यौ जात है, तृषावन्त ह्वै पीजै
‘सूरदास’ हरि-सरन ताकियै, जनम सफल करि लीजै

Bhagwan Krishna Ke Charno Main

स्तुति
भगवान् कृष्ण के चरणों में, मैं करूँ वंदना बारंबार
जो प्राणि-मात्र के आश्रय हैं, भक्तों के कष्ट वही हरतें
ब्रह्मादि देव के भी स्वामी, मैं करूँ प्रार्थना बारंबार
जो आदि अजन्मा भी यद्यपि हैं, पर विविध रूप धारण करते
पृथ्वी पर लीलाएँ करते, मैं करूँ स्तवन बारंबार
जब संकट से हम घिर जाते, करूणानिधि ही रक्षा करते
उन के पूजन से दु:ख कटे, मैं करूँ अर्चना बारंबार
जो परम तेज, जो परम ब्रह्म, अज्ञान पाप को वे हरते
स्वामी त्रिलोक के वासुदेव, मैं करूँ वंदना बारंबार

Shri Krishna Chandra Mathura Ko Gaye

विरह व्यथा
श्री कृष्णचन्द्र मथुरा को गये, गोकुल को आयबो छोड़ दियो
तब से ब्रज की बालाओं ने, पनघट को जायबो छोड़ दियो
सब लता पता भी सूख गये, कालिंदी किनारो छोड़ दियो
वहाँ मेवा भोग लगावत हैं, माखन को खायबो छोड़ दियो
ये बीन पखावज धरी रहैं, मुरली को बजायबो छोड़ दियो
वहाँ कुब्जा संग विहार करें, राधा-गुन गायबो छोड़ दियो
वे कंस को मार भये राजा, गउअन को चरायबो छोड़ दियो
‘सूर’ श्याम प्रभु निठुर भये, हँसिबो इठलाइबो छोड़ दियो

Bhagwan Krishna Lilamrut Ka

ब्रह्माजी का भ्रम
भगवान् कृष्णलीलामृत का, हम तन्मय होकर पान करें
ब्रह्मा तक समझ नहीं पाये, उन सर्वात्मा का ध्यान धरें
यमुनाजी का रमणीय-पुलीन, जहाँ ग्वाल बाल भी सँग में हैं
मंडलाकार आसीन हुए, भगवान् बीच में शोभित हैं
बछड़े चरते थे हरी घास, मंडली मग्न थी भोजन में
भगवान कृष्ण की लीला से, ब्रह्मा भी पड़े अचम्भे में
मौका पाकर के ब्रह्मा ने, अन्यत्र छिपाया बछड़ों को
दधि-भात-कौर को हाथ लिये, श्रीकृष्ण ढूँढते तब उनको
अवसर का लाभ उठा ब्रह्मा ने, ग्वाल बाल भी छिपा दिये
खिलवाड़ चला यह एक वर्ष, कोई न समझ इसको पाये
ब्रह्माजी को जब ज्ञान हुआ, गिर पड़े प्रभु के चरणों में
तन मन उनका रोमांचित था, अरु अश्रु भरे थे नैनों में