प्रबोधन
निर्विषयी बनायें मन को हम
चिन्तन हो बस परमात्मा का, हो सुलभ तभी जीवन में राम
मन और इन्द्रियाँ हो वश में, संयम सेवा का संग्रह हो
अनुकूल परिस्थिति आयेगी, सब कार्य स्वतः मंगलमय हो
उत्पन्न कामना से होते, सारे ही पाप और विपदा
जब अचल शांति हो प्राप्त तभी, मानव को रहे न क्षोभ कदा
जब आकर्षण हो भोगों में, मन भटक रहा हो कहीं तभी
यदि पूर्ण समर्पण हो प्रभु में, तो छूट जाये आसक्ति सभी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *