नैवेद्य अर्पण
थाली भरकर लाई मैं खीचड़ो, ऊपर घी की वाटकी
जीमो म्हारा कृष्ण कन्हाई, जिमावै बेटी जाट की
बापू म्हारो गाँव गयो है, न जाणे कद आवेगो
बाट देख बैठ्या रहणे से, भूखो ही रह जावेगो
आज जिमाऊँ थने खीचड़ो, काल राबड़ी छाछ की
जीमो म्हारा कृष्ण कन्हाई, जिमावें बेटी जाट की
बार-बार पड़दो मैं करती, बार-बार मैं खोलती
कईयाँ कोनी जीमे मोहन, कड़वी कड़वी बोलती
तूँ जीमें जद ही मैं जीमूँ, बात न कोई आँट की
जीमो म्हारा कृष्ण कन्हाई, जिमावे बेटी जाट की
पड़दो भूल गई साँवरिया, पड़दो फेर लगायोजी
काँबलिया की ओट बैठकर , श्याम खीचड़ो खायोजी
साँचो प्रेम प्रभु में होय तो, मूरति बोले काठ की
जीमो प्यारा कृष्ण-कन्हाई, जिमावे बेटी जाट की  

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