प्रभाती
प्रात भयौ, जागौ गोपाल
नवल सुंदरी आई बोलत, तुमहिं सबै ब्रजबाल
प्रगट्यौ भानु, मन्द भयौ चंदा, फूले तरुन तमाल
दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजवनिता, गूँथि कुसुम बनमाल
मुखहि धोई सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल
‘सूरदास’ प्रभु आनंद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल

One Response

Leave a Reply to abhijit gangopadhyay Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *