श्याम का रंग
सखी री मैं तो रंगी श्याम के रंग
पै अति होत विकल यह मनुआ, होत स्वप्न जब भंग
हो नहिं काम-काज ही घर को, करहिं स्वजन सब तंग
किन्तु करुँ क्या सहूँ सब सजनी, चढ्यो प्रेम को रंग
आली, चढ़ी लाल की लाली, अँग-अँग छयो अनंग
स्याममयी हो गई सखी मैं तो, रहूँ स्याम के संग

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